________________ [ 91 श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ONNNNNNNNNNNNNNNNNN केई दुद्धर तप धारै बनाय, लहैं केवल शिव पहुंचें सुजाय। केई श्रावकव्रत घरस्वर्गजांय कोई सम्यकदर्शन लहें सुलाय॥ केई षोडश कारण भावधार, गति तीर्थंकर बांधैं विचार। केई दसविध धर्म धरै अडोल, केई रत्नत्रय पालैं अमोल॥ जै अतिशय श्रीजिनराज देव, सत इंद्र चरणको करत सेव। जहां करतै चौथो काल सार, तहां कर्मभूमि जानैं विचार॥ तिस क्षेत्र विदेहके बीच मान, गिर आठ पड़े वक्षार जान। तिस पर बहु कूट रचे बनाय, तहां सिद्धकूट वरनो न जाय॥ तिनपर जिनमंदिर हैं रिशाल, सुरपति खगपति नावत सुभाल। तहां वेदी अति सुन्दर विशाल, तापर सिंहासन जडित लाल॥ तिस ऊपर कमल लसै महान, तहां श्री जिनबिंब बिराजमान। भामंडलकी छबि रही छाय, भव सात दरस देखत सुजान॥ जै तीन छत्र, सिरपर फिराय, जै चरन सु ढोरत अमर आय। जै दुन्दुभि शब्द धुरै अकाश सुर द्रुमके फूल खिरै सुवास॥ जै वृक्ष अशोक सुलहलहाय, जिन पूजनको भविजन बुलाय। तहां चतुरनिकाय सु देव आय, बहु नृत्य करत बाजेबजाय॥ खेचर खेचरनी सीस नाय, गुण पाठ करत आनंद बढाय। जै तुम गुण वरणन है अपार, वरनत कवि कैसे लहै पार॥ घत्ता-दोहा-आठों गिर वक्षारकी, पूजा रची विशाल। / जिनपद शीश नवायकै, लाल भनी जयमाल॥४२॥ इति जयमाला अथाशीर्वाद-कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महीमा, वर्णन को कर सकै बनाय॥