________________ 76] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान === ================ उत्तर दिश गिन सार, विजय मेरुतें जानिये। वन सौमनस विचार, तहां जिनवर पद पूजिये॥२२॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके सोमनस वन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ॥ चाल छन्द पांडुक बन सोहै सार, महिमाको वरनै। है विजय सु पूरव धार, पाप तिमिर हरनै॥ तामें जिनमंदिर सार, पूजत सुखकारी। जिनबिंब अनुप निहार, तिनपर बलिहारी॥२३॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके पांडुक वन सम्बन्धी पूर्वदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥ गिरि विजय सु दक्षिण सार, पांडुक वन सोहै। तहां श्री जिनभवन निहार, सुन नर मन मोहै। इन्द्रादिक पूजत पाय, महिमाको वरनै / हम पूजत अर्घ चढाय, पाप तिमिर हरनै // 24 // ___ॐ ह्रीं विजय मेरुके पांडुक वन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट . जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घा पश्चिम गिर विजय विशाल, पांडुक वन जानो। जिनमंदिर बने विशाल, सुर नर मन मानो॥ तहां खगपति सुरपति जाय, बहु विध नृत्य करै। हम पूजत अर्घ चढ़ाय, आनन्द भाव धरै // 25 // ॐ ह्रीं विजय मेरुके पांडुक वन सम्बन्धी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ॥