________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [75 = === ==== = == == === विजयमेरुकी पश्चिम दिशमें, नन्दनवन मन मोहत सार। तहां जिनबिंब विराजत अद्भुत, ऐसे जिनमंदिर सुखकार॥ तिनको ध्यानदेख सुरखग मुनि,निज स्वरूप अपनी सुनिहार। करम कलंक पंक नित धोवत, जजत जिनेश्वर अष्ट प्रकार॥ ____ ॐ ह्रीं विजय मेरुके नन्दनवन सम्बन्धी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 7 // अर्घ॥ विजयमेरुके उत्तर दिशमें, नन्दनवन जिनमंदिर जान। तहां जिनबिंब अनूपम सो हैं इन्द्रादिक पूजत हैं आन॥ सुर सुरांगना अर विद्याधर,सब मिल जिन गुण करत वखान। यह कौतुक बन रहो सुनिशदिन,पूजै जिन पावै सुख खान॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके नन्दनवन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // सोरठा-विजयमेरु है सार, ताकी पूरव दिश विषै। वन सौमनस निहार, तहां जिनमंदिरको जजो॥१९॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके सोमनस वन सम्बन्धी पूर्वदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ॥ दक्षिण दिश सुखकार, विजयमेरु ते लीजिये। वन सोमनस निहार, तहां जिनवर पद पूजिये॥२०॥ ___ॐ ह्रीं विजय मेरुके सोमनस वन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्थ // पश्चिम दिश सु जान, विजयमेरुकी लीजिये। जिनमंदिर सुख खान, वन सौमनस विषै जजों॥२१॥ ____ॐ ह्रीं विजय मेरुके सोमनस वन सम्बन्धी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ॥