________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [77 ===== === == === === = गिर विजय सु उत्तर ओर, पांडुक वन प्यारो। नामैं जिनभवन सु जोर, सुन्दर मन धारो॥ वहां सुर खग पूजन जांय, जिन गुण गान करै। म अर्घ चढ़ावत आय, तन मन ध्यान धरै // 26 // ___ॐ ह्रीं विजय मेरुके पांडुक वन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा विजयमेरु चारों दिशा, चारों वन सु विशाल। षोडस जिनमंदिर कहें, तिनकी यह जयमाल॥२७॥ पद्धडी जै द्वीप धातुकी है उदार, ताकी पूरव दिश लसै सार। गिर विजय नाम कहिये उतंग, जोजन चौरासी सहस अंग॥ जै कटनी चार बनी अभंग, तामैं बन चार दिपै सु चंग। वन भद्रशाल नंदन सु जान, सौमनस रु पांडुक है महान॥ चारों दिश चारों वन मझार, श्रीजिनवर भवन दिपे सिंगार। यह विध षोडस मंदिर निहार, सब समोसरण वर्णन विचार॥ जै वेदी मध्य बनी पवित्र, जै कटनी तीन कही विचित्र। जैतापर सिंहासन रिशाल, तिस ऊपर कमल रचो विशाल॥ तहां श्रीजिनबिंब विराजमान,शत आठ अधिक वरणो पुरान। भामंडलकी छबि रही छाय, भव सात दरश देखत जनाय॥ जै तीन छत्र सिर फिरै सार, जै चौसठ चमर दुरै अपार। जै वृक्ष अशोक सुलहलहाय, जै पुष्पवृष्टि सुर करत लाय॥ जै दुन्दुभि शब्द बजै आकाश, भवजीव बुलावै जिन अवास। चारों दिश सोलह भवनमांहि,जै झूमर खेलत सुर सुजाहि॥