________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [61 बने अकीर्तम जिन भवन, रतनमई सुविशाल। हां जिनबिंब निहारके, दर्शन करत सु लाल // 24 // अथाशीर्वाद-कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू सम्पति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवुपर जाय॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री सुदर्शनमेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ सुदर्शन मेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 10 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द मेरु सुदर्शनकी उत्तर दिश, ऐरावत है क्षेत्र विशाल। तीर्थंकर चौवीस होय जहां, सुरनर सेवत हैं तिहुंकाल॥ तहां पडो बैताड़ मनोहर, तिनपर जिनभवन विशाल। आह्वानन विधितिनकीकरकै, मनवचकायनवावत भाल॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिन मंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। स्थापनं।