________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [65 SSNORINTrSawarSSrNTNNNNN अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पदै पन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सक बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू सम्पति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः इति श्री सुदर्शन मेरुके उत्तरदिश ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ सुदर्शन मेरुके दक्षिण उत्तर षट्कुलाचल पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 11 ___ अथ स्थापना-मद अवलिप्तकपोल छन्द मेरु सुदर्शन दक्षिण उत्तर, षट् कुल गिर सोहें अभिराम। गिरके सिखर कूटकी पंकती, बिचर सिद्धकूट अभिराम॥ सुर विद्याधर नितप्रति पूजत, हमें शक्त नाही तिस ठाम। याते आह्वानन विध करके, निजगृह पूजत करत प्रणाम। ____ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके दक्षिण उत्तर षट्कुलाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनं। अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द उज्जल जल ले क्षीरोदधिको, श्री जिनचरणन चढावत हैं। जन्म जरा दुखनाशन कारण जिन गुण मंगल गावत हैं। मेरु सुदर्शन दक्षिण उत्तर षट, कुलगिरीपर जिनभवनं। सुर खग मिल ध्यावै पुण्य बढावै, हम पूजत हैं जिन चरणं॥