________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [71 == === === ======= दोहा-षट कुल गिरपर जिनभवन, पूजा बनी विशाल। पढत सुनत सुख उपजै, बल बल जात सु लाल॥३२॥ इति जयमाला। अथाशीर्वाद - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री सुदर्शनमेरुके दक्षिण उत्तर षट् कुलाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। इति जम्बूद्वीप मध्ये सुदर्शन मेरुके प्रथम मेरु सम्बन्धी अठत्तर जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ धातुकी द्वीपमध्ये पूर्वदिश विजयमेरु (द्वितीयमेरु) संबंधी षोडश जिनमंदिर पूजा नं. 12 अथ स्थापना-मद अवलिप्तकपोल छन्द दीप धातुकी पूरव दिशमें, विजयमेरु वन्दू सुख खान। भद्रशाल नंदन सौमनस गिन, अरू पांडुक बन चार महान॥ चारों दिशा चार जिनमंदिर, चारों बन षोड़स परमान। तिनकी आह्वानन विधि करके, हम पूजत अपने निज थान॥