________________ 42] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 22222222222881 अथ प्रत्येकार्घ (सोरठा) मेरु सु पश्चिम आन, शब्दवान गिर नाम है। ताके ऊपर जान, श्रीजिन मंदिरको जजो॥११॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी शब्दवान नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ मेरु सु पश्चिम सार, विजयवान गिर नाम है। तापर भवन निहार, पूजत भवि मन लायके॥१२॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी विजयवान नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ आसीविष है नाम, मेरु सु पश्चिम दिश विषै। ता गिरिपर जिन धाम, सुरनर पूजत भावसों॥१३॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी आशीविष नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ मेरु सु पश्चिम जान, सैंल सुषावह नाम है। ता ऊपर जिन धाम, मन वच तन कर पूजिये॥१४॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सुषावह नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ मेरु सु पश्चिम वौर, चंद्र नाम वक्षार है। है जिन मंदिर जोर, मैं पूजू मन लायके // 15 // ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी चंद्रनाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ // सूर्य नाम गिर सार, मेरु सु पश्चिमकी दिशा। श्री जिन भवन निहार, अर्घ जजों वसु द्रव्य ले॥१६॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सूर्यनाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ // "जवा