________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [39 ANINrNarrarerNNNNNrNareranaa जिन बिम्ब विराजत छबि अनूप, सुरनर विद्याधर नमें भूप। केई गावैं जिनगुण हरष धार,जिनराज छवि देखें निहार॥ केई पूर्णं सुविध द्रव्य लाय,केई पाठ पढे अति मुदित काय। केई अरघ जसें कर धरै थार, केई जै जै शब्द करै उचार॥ जगमें जैवंते होहु देव, हम ध्यावत निश दिन करत सेव। फुनी करै विनती शीश नाय, तुम चरण सदा सेवै बनाय॥ __घत्ता-दोहा मेरु सुदर्शन पूर्व दिश, गिर वक्षार महान। तिनपर जिनमंदिर बने, स्वयं सिद्ध भगवान॥ आठ अधिक अरु एकशत, प्रतिमा, जिनगृहमांहि। पूजत अति भवि सुख लहैं, निह. शिवपुर जांहि // 26 // इति जयमाला अथाशीर्वाद (कुसुमलता छन्द) मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद लै शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।