Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
View full book text
________________
साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
वैदिक महर्षियों ने गुरु में ही तीनों शक्तियों का | गुरुदेव एक अद्भुत कलाकार हैं। ऐसे कलाकार विस्तार बताया है। आइए मैं आपको एक ऐसे ही गुरुदेव । जो भोग-क्षोभ से, विभ्रम-विलास से, सत्ता-महत्ता से, एवं के दर्शन करवाऊँ जो वास्तव में गुरु शब्द को सार्थक कर | मोह-माया से ग्रसित आत्माओं को वास्तविक सत्य-तथ्य रहे हैं।
का संदर्शन कराते हैं। वे हैं - परम श्रद्धेय जैन जगत् की शान, श्रमण संघ आत्मस्थ सत्य और सौंदर्य पर पड़े हुए घने तमसावरण के उज्ज्वल नक्षत्र श्रमणसंघीय सलाहकार परमपूज्य गुरुदेव को हटाकर सत्यं, शिवं, सुन्दरम् की समुज्ज्वल ज्योति श्री सुमन मुनि जी म.। गुरुदेव का नाम सुमन है। वास्तव प्रज्वलित करते हैं। आप ऐसे कलाकार हैं जो जनमें यदि देखा जाए तो उनका जीवन एक सुवासित सुमन जीवन-निर्माण की महान् साधना में संलग्न रहकर अपने की भाँति ही है। जिस तरह एक गुलाब का खिला हुआ ज्ञान और चारित्र के औजारों से अनगढ़ जन-जन-प्रस्तर फूल अपनी बगिया को महका देता है। तथा उसकी से सौंदर्य समन्वित प्रतिमा का भव्य निर्माण करते है। सुन्दरता को और अधिक सुन्दर बना देता है। इसी प्रकार ऐसा चितेरा जो अपने सद्गुणों के रंग और तूलिका से परमपूज्य गुरुदेव का जीवन भी उस खिले फूल की भाँति विश्व विख्यात भव्यचित्र का निर्माण करता है। कहा भी अपनी श्रमणसंघ रूपी बगिया में चार चाँद लगा रहा है। गुरुदेव के दर्शनों का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त है। मैंने
संत वही जो घृणित जीवन को, महिमावान बना देता है। देखा - गुरुदेव का जीवन सामान्य सन्तों से बहुत ऊपर
ठोकर खाते पत्थरों को जो, भगवान बना देता है।। उठा हुआ है। गुरुदेव के चेहरे पर एक अपूर्व तेज देखा है; मैंने। वृद्धावस्था होने पर भी सदा अध्ययन में ही रमे
परम श्रद्धेय गुरुदेवश्री जी ऐसे ही सच्चे जीवन देखा है। किसी भी बात को एक बार करने का ठान शिल्पी, प्रबुद्ध-कलाकार और चतुर चितेरे हैं। अपने लिया तो उसे पूर्ण करके ही दम लिया। इतने दृढ़ जीवन निर्माण के साथ-साथ जन-जीवन का भी नव निर्माण निश्चयी हैं, गुरुदेव । बड़ी-बड़ी कठिन समस्याओं को पल करते हैं। भर में सुलझा देते हैं। उनका मैने निर्भीक व्यक्तित्व देखा
एक छोटी सी किरण बनकर प्रस्फुटित हुए थे राजस्थान
की शस्यश्यामला पृथ्वी पर ! वह ग्राम पाँचूं भी धन्य हो गुरुदेव की वाणी में ओज है। व्यवहार में माधुर्य
उठा जब वहाँ ऐसे अद्भुत् चितेरे ने जन्म लिया था। इतना कि यदि बालक भी चरणों में पहुँच जाए तो गुरुदेव
पतझर खड़ा रहा सिराहने, स्वयं भी बालक की भाषा में ही बोलने लग जाते हैं। और गंभीर इतने कि उपमा देना भी व्यर्थ सिद्ध होगा। मैं
लेकिन और अधिक तुम महके। जब कभी एकान्त क्षणों में बैठती हूँ तो स्वतः ही गुरुदेव
तुम दीपक थे पर आँधी में का ध्यान आ जाता है। मुक्त अनगढ़ पत्थर को जमीं से
बनकर तुम अंगारा दहके।। उठाकर मेरी गुरुणी मैया श्री महासती पवन कुमारी जी म. समय अनुसार नव क्रांति करते हुए, समाज को नई रूपी शिल्पकार के हाथ में देनेवाले पूज्य गुरुदेव ही हैं। दिशा प्रदान करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे हैं। मैं तो गुरुदेव का ऋण जन्म-जन्मान्तरों में भी पूरा करने में | गुरुदेव के वे लम्बे-लम्बे विहार अब भी मेरी स्मृति में एक असमर्थ हूँ।
चित्र की भाँति उभर रहे हैं। सन् १९८७ में पूना में साधु
|१८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org