Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वात्सल्य मूर्ति
ओजस्वी- तेजस्वी- व्यक्तित्व के धनी, स्पष्टवक्ता पूज्यवर श्री सुमनमुनिजी म. के पावन चरणों में वन्दन !
आपकी वाणी में वह मधुरता है कि हर कोई व्यक्ति स्वतः ही आकर्षित हो जाता है । .... चंगलपेट में आपश्री से जो आत्मीयता, सौहार्द और वात्सल्य पाया वह हमेशा अक्षुण्ण रहेगा!
पुनः श्री चरणों में वन्दन !
आदर्श ग्रुप (साध्वी आदर्श ज्योति)
वीर प्रभु के अमर सेनानी श्री सुमन मुनि जी
श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन श्रमण संघ को स्वर्ण कंकण की उपमा दी जाए तो निश्चित ही श्रमण संघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमन मुनिजी म. उस स्वर्ण कंकण में जटित सर्वाधिक दीप्तिमान तेजस्वी मणि के रूप में देखे जा सकते हैं । मुनिश्रीजी के सरल विनम्र एवं निर्मल व्यक्तित्वमणि की शुभ्र आभा न केवल अपने व्यक्तित्व गौरव को ही बढ़ाया है, अपितु स्वर्ण कंकण भी निश्चित रूप से गौरव मंडित हुआ है।
आपश्री श्रमण संघ के एक अपूर्व कर्णधार हैं जो कि संघ को विषम परिस्थितियों और भयंकर तूफानों से बचाते हुए सुरक्षित रूप से गतिशील कर रहे हैं ।
मुनिश्री का जैसा नाम है तदनुरूप ही वे सर्वत्र अपने सद्गुणों की सौरभ को प्रसारित कर रहे हैं । आपका जीवन सुमधुर सुकोमल एवं सौरभान्वित सुमन सम है । आप मानव पुष्प के रूप में अवतरित होकर सेवा समता
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वंदन - अभिनंदन !
एवं सहिष्णुता की सुमधुरता स्वभाव सौंदर्य तथा सद्गुणसौरभ सर्वत्र वितरित कर रहे हैं।
ऐसी महान संत आत्मा के प्रत्येक मौलिक पहलू की आदर्श कथा को लिखने में श्री वीर प्रभु लेखक को सत् प्रेरणा, सद्बुद्धि प्रदान करें। यही हार्दिक मनोकामना है ।
श्री वीरप्रभु के वीर सेनानी की संधैक्य-साधना - साध्य करने की आन्तरिक मनोकामना फलीभूत हो । आदर्श संघ बनाने के लिए दीर्घायु करें । यथा शक्ति मुक्ति बुद्धि प्रदान करें तथा मार्ग में जो शूल हों वे फूल बनें, यही सदिच्छा रखती हूँ ।
उपप्रवर्तिनी साध्वी पवनकुमारी, दिल्ली
जीवन शिल्पी, प्रबुद्ध कलाकार, कुशल चितेरे
भींवराज के दुलारे वीरां के नन्दन हो । दुखियों के सहारे करुणा के स्पंदन हो, अन्तर आस्था सहित किए वन्दन को स्वीकार करो। जन-जन के तारण हारे, कोटिशः अभिनन्दन हो । ।
भारत की संस्कृति में गुरु का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। गुरु की महिमा सभी पंथों के ग्रंथों में अपनी अपनी भाषा में अपने अपने तरीके से की गई है। शरीर के लिए आँखों का होना आवश्यक है। गुरु जीवन बनानेवाला होता है। वह जीवन के अन्धकार को दूर करके प्रकाशमान करता है। भटके हुए राही को सही सन्मार्ग प्रदान करने की शक्ति केवल गुरु में ही है। वैदिक धर्म में गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है:
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
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