Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन - अभिनंदन !
बहुत मेधावी एवं तीक्ष्ण प्रज्ञा-सम्पन्न प्रतीत हुए थे। । निमंत्रण एवं सूचना की आवश्यकता नहीं। अध्यात्मउसके बाद दूसरा अवसर पूना सम्मेलन के समय
भक्त जन भी मुनि-पुष्प की सुगन्ध से स्वयं ही खिंचे चले आया। उस समय आपने 'शान्ति रक्षक' की जो भूमिका
आ रहे हैं। आपकी पहचान के लिए किसी भक्त जन को निभाई उससे मैं बहुत प्रभावित हुई। आप यथानाम तथा
कोई आधार की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि 'यथा गुण सम्पन्न मुनिराज हैं।
नाम तथा गुण' की पहचान, सहारे की अपेक्षा नहीं रखती। ___ २२-१०-६६ को चेन्नई में आपकी दीक्षा-स्वर्ण-जयंती
साधक के लिए सबसे प्रथम आवश्यक है कि मनाई जा रही है। तत्रस्थ श्रीसंघ आपके संयम को अभिनन्दन
आध्यात्मिक साधना का प्रारम्भ सु-मन से हो । एक साधक करने के लिए एक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर रहा
श्री सुमन मुनि जी की ओर बढ़ता ही जा रहा था बीच में
किसी ने पूछ लिया कि आप उधर क्यों जा रहे हो ? तब है। इस पावन प्रसंग पर हम सब साध्वियों की ओर से
साधक प्रत्युत्तर देता है - अरे, मुझे क्या सोचने की जरूरत आप श्री के चरणों में प्रणमाञ्जलि एवं भाव-सुमनांजलि
है वह व्यक्तित्व श्रेष्ठ मन वाला है। सम्यक्-आचरण की अर्पित है। हम कामना करती हैं कि आप स्वस्थ रहें,
महक से स्वयमेव ही प्रगट हो रहा है। मुझे जीवन की निरोग रहें, चिरायु हों एवं सुदीर्घ काल तक जिन शासन
गरिमा के लिए आदर्श भी मिला और आधार भी। जो की सेवा करते रहें।
चाहिए था मिल गया यह सुमन संत है, मुनि है, साधु है, - साध्वी मंजुश्री (दिल्ली) गुरु है अर्थात् इसका मन श्रेष्ठ-शुद्ध है। प्राकृतिक चंचलता
से रहित है। अतः शत-शत वन्दन ! सुमन सुरभि
संत अर्थात् समता। अपने आप को तपाया है,
पकाया है। कच्चा जीवन नहीं है। अपूर्ण नहीं है। पूर्ण किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए कुछ लिखना |
पुरुष का दर्शन समागम ज्ञेय और उपादेय है। अतः हम अति कठिन है। क्योंकि जैसे बीज को वृक्ष बनने के लिए
प्रसन्न हैं इस पूर्णपुरुष को पाकर । लम्बी यात्रा करनी पड़ती है उसी प्रकार व्यक्तित्व की यह मुनि हैं। इन्हें पता है सत्य की रक्षा के लिए मौन पहचान भी दीर्घ यात्रा के बाद संभव हो सकती है। पर अधिक आवश्यक है। यह संत का लक्षण भी है कि कम वह जीवन जो संसार में खुली पुस्तक की तरह हो, बोले और तोलकर बोले । आप ऐसे ही सत्य पुरुष हैं। चमकते हुए सूर्य के आलोक की भांति भासित हो, शीतल | धन्य है, आपके सत्यनिष्ठ जीवन को। ये साधु-जीवनपवन की तरह से सुखद हो, उस जीवन को जानने के युक्त हैं। आपकी प्राणी मात्र के प्रति मित्रता की भावना लिए प्रयास नहीं करना पड़ता और न ही शंका है कि हम आत्महित का साक्षात्कार कराती है। आप के श्री चरणों उसे जान सकते हैं या नहीं।
में पहुँच कर कोई खाली नहीं जाता। वह भी आप सम श्रमणोद्यान के खिलते महकते फूल श्री सुमन मुनि
बनने का सौभाग्य पा सकता है। कवि की उक्ति भी इसी
तथ्य को दिखा रही है - जी महाराज आपकी जीवन यात्रा ने खूब स्पष्ट कर दिखाया है कि आप श्रमणसंघ के अद्वितीय मुनि-पुष्प हो। पुष्प
पारस में अरु संत में, अन्तर जान महान् । की महक से भँवरें भी अपने आप आगे लगते हैं उन्हें वह लोहा कंचन करे, वह करे आप समान।।
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