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. पत्र पंचम
.... विस्मरण
प्रिय बन्धु !
तुम्हारे पत्र की भावपूर्ण - ललित पंक्तियों ने मुझे प्रचुर आह्लादित किया है। यह सत्य है कि "सौ सुनी हुई बात और एक देखी हुई बात" उसी प्रकार यह बात भी सत्य है कि 'सौ देखी हुई वात और एक अनुभूतं की हुई बात" अर्थात् सुनने से अधिक साक्षात् देखने से और देखने से अधिक करने से किसी भी बात की विशेष प्रतीति होती है। यदि समय-समय पर जगत मे अद्भुत स्मरण शक्ति वाले पुरुष पैदा नहीं होते तो संसार के मनुष्य स्मरण शक्ति के अद्भुत सामर्थ्य को शायद ही स्वीकार करते; परन्तु आज तक वह क्रम चालू रहा है इस कारण मानव समाज ने स्मरण शक्ति के अपूर्व बल को अंगीकार कर रखा है।
लाखो करोड़ो अरे अरबो सस्कारों के समूह मे से अमुक सस्कार को ही कुछ पलको मे मन मे जागृत करना यह कोई ऐसी-वैसी वात नही है । इस एक मुद्दे पर ही मनुष्य यदि गम्भीरता से विचार करे तो स्मृति की महत्ता उसके हृदय मे बैठे बिना नही रहेगी।
अभी तुम्हारे दिल मे विविध प्रश्न उठते हैं। इसलिये कि तुम्हारी जिज्ञासा पूरी-पूरी सन्तुष्ट नहीं हुई। पर मै मानता हूँ कि अब थोडे समय मे ही तुम्हारे मन का सम्पूर्ण समाधान हो जायेगा और तुम क्रियात्मक समाधान के मार्ग मे शीघ्रता से चलने लगोगे।
तुम्हारे प्रश्नो के उत्तर निम्न हैंप्रश्न-हम भूल कैसे जाते है ?