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का प्रेम और भक्ति-पूर्वक ध्यान करके परमात्मा के साथ तन्मय हो सकता है, तव ही उसे सम्यग्दर्शन (आत्म-दर्शन) प्राप्त होता है, उसके बिना प्राप्त नही होता।
___ अपूर्व भावोल्लास-पूर्वक परमात्मा का स्मरण करने से, उनके गुणो पर मनन करने से उनकी मूत्ति की पूजा करने से, उनके द्वारा प्ररूपित धर्म की आराधना करने से और उनकी किमी एक अवस्था मे रमण करने से
आत्मा मे एक भारी ऊहापोह उत्पन्न होता है और उसके परिणाम-स्वरूप "आत्मा स्व-दर्शन प्राप्त कर सकती है ।
अपनी आत्मा की ही भावी परम विशुद्ध अवस्था को उत्कृष्ट प्रकार का सम्मान प्रदान करने की योग्यता सम्यग् दर्शन की प्राप्ति के पश्चात् ही प्रकट होती है और सम्यग-दर्शन की प्राप्ति परमात्मा की प्रीति-भक्ति के द्वारा ही होती है । विशेष जिज्ञासुओ को उसके लिये कार्य-कारण भाव के अटल नियम का रहस्य समझना चाहिये ।
__ वह निम्न लिखित है ---कोई भी छोटा या बडा कार्य दो प्रकार के कारणो की अपेक्षा रखता है। जिस प्रकार घड़ा बनाने मे मिट्टी, चक्र, डण्डा आदि कारणो की अपेक्षा रहती है। उसमे मिट्टी उपादान (मूल) कारण है और चक्र, डडा प्रादि निमित्त कारण हैं, सहयोगी कारण हैं । उसी प्रकार से मोक्ष-प्राप्ति मे सम्यग्-दर्शन आदि आत्म-गुण उपादान कारण हैं और परमात्म-भक्ति आदि निमित्त कारण हैं ।
___ जिस प्रकार चक्र, डडा आदि सहयोगी कारणो के बिना घडा नही वन सकता, उसी प्रकार से परमात्मा की भक्ति के बिना सम्यग्-दर्शन आदि गुण प्रकट नही हो सकते, तो फिर मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है ?
प्रश्न--परमात्मा का प्रेम-पूर्वक गुण-गान और ध्यान किये विना आत्म-दर्शन क्यो नही होता ?
उत्तर--अनादि काल से राग-द्वेष आदि अान्तरिक दोषो से घिर हुना जीव शरीर, सम्पत्ति, सुन्दरी और इन्द्रिय-सुख आदि अशुभ निमित्त
मिले मन भीतर भगवान