Book Title: Smarankala
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 291
________________ हैं, शास्त्रार्थ के पाठक होने से 'उपाध्याय' कहलाते हैं और निर्विकल्प चित्त वाले होने से 'साधु' कहलाते हैं । इस प्रकार पच परमेष्ठियो का वाचक होने से "अह" परमेष्ठि बीज है। जो परम-पद पर प्रतिष्ठित तथा परम ज्ञान स्वरूप श्री अरिहन्त... परमात्मा का वाचक है तथा अचल, अविनाशी, परम ज्ञान, स्वरूप अथवा मोक्ष एव ज्ञान के हेतु स्प तथा श्री सिद्ध चक्र का प्रधान बीज है उन "मह" । का हम मर्वत , सर्व क्षेत्र और सर्वकाल मे प्रणिधान-ध्यान करते हैं (सिद्धहम व्याकरण) । इस प्रकार सकल-अर्हत् अर्थात् पूजनीय परमेष्ठी और सकल अर्हत अर्थात् श्री अरिहन्तो का स्थान, 'अहं' परमेष्ठि-बीज और श्री ज़िनराजवीज है। सिद्ध बीज -"अधिष्ठान शिव श्रिय" - "अहं" शिव लक्ष्मी अर्थात् सिद्ध का भी वीज है । अक्षर अर्थात् मोक्ष, उसका हेतु होने से मोक्ष का बीज कहलाता है तथा स्वर्ण-मिद्धि आदि महासिद्धियो का कारण होने से "सिद्ध वीज' है, तथा शिव-कल्याण-मगल आदि का वीज होने से शिव अथवा सुख का भी वीज कहलाता है। श्री लक्ष्मी-केवल-ज्ञान रूपी लक्ष्मी अथवा धनसम्पत्ति रूपी लक्ष्मी का भी वीज है। * ज्ञान बीज - "अह" ब्रह्म स्वरूप होने से ज्ञान-बीज है। "सकलाहत्" अर्थात् कला सहित "अ-र-ह" जिसमे प्रतिष्ठित है ऐसे "अह" मे 'अ' से 'ह' तक के अक्षरो का समावेश होने मे वह समन श्रुत-ज्ञान का भी बीज है। त्रैलोक्य बीज - "अह" त्रैलोक्य वीज है । * ज्ञान बीज जगद्वन्द्य , जन्ममृत्युजर पहम । अकारादि हकारान्त, रेफ-विन्दु-कलाकितम् । [तत्त्वार्थ-सार-दीपक] सकलागमोपनिषद्भूत सकलस्य द्वादशागस्यगणिपिटकरूपस्य हिकामुष्मिकरूपफलप्रदस्यागमस्योपनिषद्भूत । [सिद्धहेम बृहत् व्याकरण] मिले मन भीतर भगवान १२१

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