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का अगाध सामर्थ्य है । इसलिये उसका स्मरण, मनन और ध्यान पापो को समूल नष्ट कर सकता है।
इस प्रकार पाप-प्रकृति का विलय और पुण्य-प्रवृत्ति का सचय करने वाला होने से वह श्रेष्ठतर मगल स्वरूप है ।
गुण-निधान श्री पच परमेष्ठी भगवन्तो की उपासना के द्वारा प्रात्मा मे प्रच्छन्न गुण प्रकट होने लगते हैं, प्रकृष्ट पुण्य का सचय होता है जिसके द्वारा स्वर्ग एव अपवर्ग के मुख प्राप्त होते हैं ।
विधि एव सम्मानपूर्वक की गई श्री पच परमेष्ठी भगवन्तो की नामस्मरण, जप, ध्यान आदि उपासना द्वारा तीर्थंकर नाम कर्म का बन्ध होता है। आज तक जो-जो तीर्थंकर परमात्मा हुए हैं, हो रहे हैं और होगे, वे समस्त इन पचो परमेष्ठी भगवन्तो की प्रकृष्ट उपासना के द्वारा ही हुए है, हो रहे हैं और होगे।
जीव को मुक्ति का सच्चा मार्ग श्री पच परमेष्ठी को नमस्कार करने से प्राप्त होता है, क्योकि उनके समग्र मन मे सर्व मगलकारी शुद्ध
आत्म-स्नेह का साम्राज्य स्थापित होता है। अतः उनको नमस्कार करने वाले के मन मे आत्म-स्नेह स्थापित होता है और अनात्म-रति नष्ट होती है ।
"नमो अरिहताण" वोलने पर वर्तमान काल के इस क्षेत्र के चौबीस अरिहत भगवन्तो के परम तारणहार जीवन तथा परम गुणो के सम्बन्ध पर हम आ जाते हैं । इतना ही नही, परन्तु सर्व कालिक, सर्व क्षेत्र के सर्व श्री अरिहन्त भगवन्तो के परम तारणहार जीवन के सम्बन्ध मे तथा परम गुणो के सम्बन्ध पर पाया जाता है, उस जीवन और उन गुणो की अनुमोदना होती है।
मनुष्य स्वय जितना धर्म कर सकता है उससे अनन्त गुना धर्म इस अनुमोदना से कर सकता है, होता है । इस अकाट्य नियम के अनुसार सच्चे
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मिले मन भीतर भगवान