Book Title: Smarankala
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 274
________________ है कि उसको चुनौती देने वाला भाव अन्य किसी भी पुरुप मे होता ही नही। परम तारणहार यह भाव सचमुच अमूल्य है, अतः उत्कृष्ट भाव एक अत्यन्त मूल्यवान पदार्थों से श्री अरिहन्त परमात्मा की भक्ति करने मे तीनो लोक के प्राणी गौरव समझते हैं । भव को भाव प्रदान करने की मिथ्या मति का ध्वस इस भाव को भजने से होता है। भाव को भजने के लिये श्री अरिहन्त परमात्मा की आज्ञा का विविध से पालन करना ही पड़ता है। यह आज्ञा नियमा कल्याणकारी है, सर्व कर्म-क्षयकारी है। १०४ मिले मन भीतर भगवान

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