Book Title: Smarankala
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 272
________________ अत उनके देह की कान्ति एवं इन्द्र के देह की कान्ति मे चांदनी रात और अमावस की रात जितना अन्तर होता है । श्री अरिहन्त परमात्मा का कान्तिमय दिव्य देह प्रस्वेद-रहित होता है, श्वासोश्वास कमल के समान सुगन्धित होता है और उनके आहार-निहार की प्रक्रिया चर्म-चक्षुषो से परे होती है । केवल श्री अरिहन्त परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी मे किसी भी समय मे प्रकट नहीं होने वाले ऐसे अद्वितीय गुण, उनके अगभूत विश्ववात्सल्य के परिपाक स्वरूप है। इस प्रकार की अद्भुत प्रभुता के पुनीत दर्शन, प्रकृष्ट पुण्य-निधान श्री अरिहन्त परमात्मा के अतिरिक्त अन्यत्र कहाँ हो सकते हैं ? इस प्रकार की अलौकिक स्थिति के दर्शन मात्र से भी कितने ही जीव सुमार्ग-गामी होते हैं। - सर्वज्ञ एव सर्वदर्शी होने के पश्चात् भी श्री अरिहन्त परमात्मा जीवो को स्वार्थीय-प्रेम से छुडवा कर, परमार्थ-रसिक बनाने वाले धर्म का उपदेश देते हैं । इतना ही नही, परन्तु उन परम कृपालु परमात्मा के पुनीत चरणकमल जिस धरा का स्पर्श करते हैं, वह धरा भी तारणहार तीर्थ की क्षमता से युक्त हो जाती है, और वह वातावरण भी विशुद्ध आत्म-स्नेह से सुवाहित होकर विश्व मे प्रवाहित अशुभ भावो का बल कुण्ठित करता है। . असीम करुणा-निधान श्री अरिहन्त परमात्मा जिस क्षेत्र मे विचरते हैं उस क्षेत्र मे और उसके आसपास के क्षेत्र मे सैकडो मील तक अतिवृष्टि का प्रकोप नही होता, अनावृष्टि से दुर्भिक्ष नही पडता, टिड्डी, चूहो आदि के उपद्रव नही होते; रोगो के परमाणु प्रविष्ट नहीं होते और कोई आक्रमण नही होता। वहाँ सुख-शान्ति एव प्रानन्द-मगल का वातावरण छा जाता है। १०२ मिले मन भीतर भगवान

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