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दशा मे से विचलित नहीं होता; क्योकि देह एव आत्मा दोनो भिन्न पदार्थ होने का ज्ञान उसने आत्मसात् किया हुआ होता है । अतः जो बिगडती है, जलनी है, पेली जाती है अथवा तपती है वह देह है, मेरी आत्मा नही है, क्योकि आत्मा तो अजर-अमर है । योगी इस प्रकार की निश्चल भावना के चरम शिखर पर आरूढ होता है ।
इस प्रकार की निश्चल भावना द्वारा साधक अन्तमहूर्त मे क्षपक श्रेणी पर चढकर, केवल ज्ञान प्राप्त करके, शैलेशीकरण करके शाश्वत-धाम मे पहुँच सकता है।
ये हैं असग दशा के ठोस उदाहरण एव प्रत्यक्ष फल ।
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मिले मन भीतर भगवान