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पत्र बाईसवाँ
भाव बन्धन
प्रिय बन्धु !
सामान्यतया यह बात फैलाई हुई है कि सख्याएं तो कोई भी तरकीब से याद रह सकती है । पर सर्वतोभद्र यंत्र जैसा अटपटा सख्या-सयोजन याद कैसे रहे ? इसलिए उसी सम्बन्ध मे स्पष्टता करना चाहता हूं कि यदि बुद्धि को अजमाया जाय और स्मृति मे भाव जमाया जाय तो स्मृति इस कार्य में पीछे कभी नहीं हटेगी। यह तथ्य एक-दो उदाहरणो से परखा जा सकता है।
पहले तो सर्वतोभद्र यन्त्र क्या है ? यह समझ लें । एक चोरस खाने के समान विभाग बनाए जा राके, जैसे कि-३४३=९, ४४४=१६, ५४५%=२५, ६४६= ३६, ७४७-४९, ८४८-६४ प्रादि और उस हर एक भाग मे ऐसी संख्या भरी जाए कि जिसका खडा/पाडा और टेडा-मेडा जैसे भी जोड किया जाए योग समान ही आए, उसे सर्वतोभद्र यन्त्र कहा जाता है। अग्रेजी मे इसे "मेजिक स्क्वेयर" कहते है और सामान्य लोक उसे जन्तर (यन्त्र) के नाम से पहचानते है। उदाहरण के तौर पर नीचे दिये हुए यन्त्र १५, २७ और ४५ के नव खानो के सर्वतोभद्र यन्त्र है१५ (पन्द्रह) का २७ (सत्ताईस) का ४५ (पैतालीस) का
| ४ | ९ | २ |१५| ८ | १३ | ६ २७/ १४ | १६ | १२ ४५ १५ १५ १५ १५ २७ २७ २७ २७ ४५ ४५ ४५ ४५
ऐसे यन्त्र सैकडो, हजारो बल्कि असंख्य वन सकते हैं, पर उनकी रचना किस सिद्धान्त पर होती है, यह प्रथम जान लेना आवश्यक है।