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अपने उपकारी पुरुष का चित्र देख कर भी मनुष्य हर्ष विभोर हो जाता है, तो फिर समस्त जीवो के परम उपकारी श्री जिनेश्वर देव की मूर्ति के दर्शन करके हमारे साढे तीन करोड रोम-कपो मे हर्ष के दीपक प्रज्वलित होने ही चाहिये।
श्री जिन नाम भी श्री जिन-प्रतिमा जितना ही मगलप्रद, वाछितप्रद और सौभाग्यप्रद है ही।
प्रभु का नाम प्रभु की मत्रात्मक देह है, उस सत्य की अनुभूति सविधि मम्मान सहित नाम स्मरण से होती है । उसका लक्षण यह है कि समस्त देह मे हर्ष की लहरें उठती हैं, नेत्र हर्षाश्रु से सिक्त बनते हैं, चित्त मे अपूर्व प्रसन्नता होती है।
___ जो व्यक्ति रात-दिन के श्रेष्ठ क्षणो मे श्री जिनेश्वर देव के असख्य उपकारो का चिन्तन-मनन करते हैं उन्हें श्री जिनेश्वर देव के चारो स्वरूप समान उपकारी होने का शास्त्रोक्त सत्य सर्वथा सही प्रतीत होता ही है ।
अरिहन्त परमात्मा का नाम एव मूत्ति तीनो लोको मे बसे हुए जीवो पर उपकार करते हैं। वह तथ्य इस बात से सिद्ध होता है ।
श्री अरिहन्त परमात्मा द्रव्य से भी इस विश्व मे सर्वत्र विद्यमान रहते । हैं, परन्तु विशिष्ट कोटि के ज्ञानी भगवतो के विना उन्हें पहचाना नही जा सकता।
भाव से तो तीन लोको मे, तीनो काल मे परमात्मा सर्वत्र विद्यमान हैं ही।
हाँ, उस भावना मे हमारी भावना सम्मिलित होनी चाहिये, तो इस काल मे भी परमात्मा का उत्कृष्ट आलम्बन मिल सकता है ।
मिले मन भीतर भगवान
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