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भक्ति -योग
भक्ति की भव्य शक्ति
प्रीतियोग की पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए साधक मे भक्ति-योग विकसित होता है।
भक्ति की शक्ति अकल, अटल एव अपार है । उसका प्रभाव और प्रताप अद्भुत है।
समस्त प्रकार की श्रेष्ठ साधना का विकास भी भक्ति की भव्य शक्ति के द्वारा ही होता है । भगवद्-भावना का अनमोल बीज भी भक्ति ही है। भक्ति की शक्ति के द्वारा ही ऐसी युक्ति प्राप्त होती है जो मगलमयी मुक्ति के साथ हमारा चिरन्तन मिलन करा देती है।
भक्ति भव का भ्रम नष्ट करके स्वभाव का साहजिक आनन्द प्रदान करती है।
भक्ति अशुभ मे से शुभ मे और शुभ मे से शुद्धता मे ले जाती है ।
भक्ति बाह्य दशा मे से आभ्यतर दशा में ले जाकर परमात्म-दशा के सम्मुख ले जाती है।
भक्ति भक्त का भगवान से साक्षात्कार कराने वाला सुहावना सेतु (पुल) है।
जिस प्रकार बालक के लिये विश्वासपात्र केवल माता ही होती है, उसके अतिरिक्त अन्य किसी भी व्यक्ति पर उसे अपनी माता के समान विश्वास नही होता, उस प्रकार से भक्त के लिये विश्वासपात्र केवल भगवान
मिले मन भीतर भगवान