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१५२, स्मरण कला
फेरा नही गया इसलिए वह जल रही है अर्थात् इन सारे विपयो मे फेरने की क्रिया नहीं की गई।
तुम भी इन पत्रो को, इस पत्र में विज्ञापित सिद्धान्तो को यदि प्रारम्भ से लेकर अन्त तक एक बार, दो वार, तीन वार फेर लोगे तो तुम्हारी स्मरण कला सोलह कलायो से उद्दीप्त हो उठेगी, इसमे सशय नहीं । पुनरावर्तन से तुम्हे नया ज्ञान मिलेगा । जैसे गाय समस्त घास चर जाती है और फिर शान्ति से उगल-उगल कर निकलती है वैसे ही तुम भी एक बार विषय को सामान्यतया ग्रहण करने के बाद फिर विशेष रूप से धारण करोगे तो उनके सूक्ष्म अङ्गों का रहस्य तुम्हारे समक्ष एकदम खुल जाएगा।
प्राज का हमारा शिक्षण जिस ढग से चलता है। उसमे समय और शक्ति का बहुत व्यय होता है और जो परिणाम आना चाहिए वह पाता नही है । इसका कारण यह है कि बुद्धि के मुख्य आधारभूत सभी स्मरण शक्ति के सिद्धान्तो का उसमे यथार्थ रूप से समावेश नहीं किया गया। यदि इन सिद्धान्तो का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाय, तो. उतने समय मे बहुत अधिक और बहुत अच्छी तरह से सीखा जा सकता है ।। - स्मरण-कला का प्रकाश पाए हुए देश के सब पुरुष और महिलाएं धर्म और देश की वास्तविक सेवा करने के लिए भाग्यशाली हो यही मङ्गलकामना है । -
- तुम्हारा सब तरह से अभ्युदय चाहता हुआ इस पत्र को पूर्ण कर रहा हूँ । ॐ शान्तिः । शान्तिः :! शान्तिः !!!