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स्मरण कला है १३७
२४७६१६६ का पचघात का मूल क्या है ? १६ कारण कि अ क सात है, इसलिए वार सख्या है। वार के अन्त मे कौतुक होता है। इसलिए (महा) ६ से ६ तक आगे १ होता है और (द्वीप) ० से ५ तक आगे २ होते है। इसलिए यहाँ आगे एक होना चाहिये । पीछे का अक निश्चित ह ही है। इसलिए उत्तर १६ हुआ।
२८६२६१५१ का पचघात का मूल क्या है ? ३१ । क्यो कि संख्या आठ अक की है, इसलिए सिद्धि वर्ग की है। उनमे राधा अर्थात् ११ से २० तक की सख्या के पूर्व मे २ है और बाकी की सख्या मे ३ है। इसलिए पूर्व का अक ३ पीछे निश्चित १ वे दोनो मिल कर ३१ हुए।
६६३४३६५७ का पचघात मल क्या है ? ३७ । सख्या पाठ अक की है, इसलिए सिद्धि वर्ग की है, उनमे आगे २ अक २० से अधिक हैं, इसलिए आगे ३ और पीछे का अ क ७ कुल ३७ ।
__ २०५६६२६७६ का पचघात मूल क्या है ? ४६, क्यो कि सख्या नव अक ही है अर्थात् विधि वर्ग की है। उनमे राशि से अर्थात २८ से आगे की सख्या ४ है । २८ वीमा तक की अर्थात् ७६ तक की संख्या ५ है 'और बाद की ६ है । यह आगे की संख्या २० है । इसलिए ४ और पीछे के ६ मिलकर ४६ हुई।
१६३४६१७६३२ का पचघात मूल क्या है ? उत्तर ७२ । क्यो कि संख्या १० अक की है। इसलिए दिक्पाल वर्ग की है। उसके आगे नप्पु १५ तक की सख्या हो तो ६, गीनी अर्थात् ३१ तक की सख्या हो तो ७, पाश अर्थात् ५८ तक की सख्या हो तो ८ और शेष की संख्या के लिए ६ समझने चाहिए । यहाँ राख्या २० होने से आगे ७ है और पीछे २ है; मिलकर ७२ हुई।
इस पद्धति से १ से १०० तक की सख्याएं जो पूर्ण पचघात हैं, उनका मूल भाव-बन्धन से बताया जा सकता है।
यह विषय प्रति गहन है, जिमसे इसमे बुद्धि को जितनी कसनी हो उतनी कसी जा सकती है। एक बार बराबर व्यवस्थित विचारणा हो चुकी हो और भाव का बन्धन यदि यथार्थ हो गया हो, तो वह बराबर याद रह सकता है ।
मंगलाकाक्षी
धी०