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स्मरण कला १ १४५
... . इन विषयो को धारण करने के बाद उन समस्त का क्रम तथा प्रत्युत्तर यथार्थ रूप से बताया गया ।
सन् १९३७ के जुलाई महीने मे कराची की विभिन्न सस्थाओ के सान्निध्य में इस प्रकार के प्रयोग नव वार किये गये। उनमे गुणाकार, निबन्ध - लेखन, पादपूर्ति, अन्तर्लापिका, बहिर्लापिका, सभाषण आदि का भी कार्यक्रम- रखा गया। - अन्य स्थानो मे किये गये अवधान प्रयोगो के बीच-बीच मे वार्तालाप और चर्चा का समावेश भी रखा गया। ' दूसरे अवधानकार अपनी अपनी रुचि के विषयो को अलग अलग प्रकार से संयोजित कर सकते हैं । जैसे कि पृथक्-पृथक् विषयो पर छन्द वार कविता, शतरज और पासा के दांव, घटनाद आदि ।
___ इन विषयो को विवेचना - से तुम जान सकोगे कि प्रवधान प्रयोगो मे विषयो की विविधता खूब ही होती है और उन हरेक विषय को चाहे जितनो अटपटी प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है; परन्तु सभा मे उच्च प्रासन पर शान्त और स्थिर-चित्त चक्षु बन्द किये बैठा हुअा अववानकार उन हरेक विषयो को अपने मन मे एक के बाद एक सयोजित करता चला जाता है और चार या पाँच घण्टो के बाद उन समस्त का बरावर प्रत्युत्तर दे देता है। उस समय श्रोताप्रो के आश्चर्य का कोई पार नही रहता। . .
परन्तु मेरे प्रिय बन्धु । मेरे इतने पत्र बांच लेने के बाद अब तुम्हे इस विषय मे विस्मय नही होगा । इनमे से हरेक प्रयोग के बारे मे पिछले पृष्ठो मे दिवेचन कर चुका हूँ। ये समस्त प्रयोग किसी न किसी सिद्धान्त पर ही व्यवस्थित हैं ।
' मैं मानता हू कि तुम स्वयं इन विषयो के पीछे रहे सिद्धान्तो को बराबर समझ सके हो। फिर भी यदि कोई विषय विशदता से ध्यान मे न आया हो तो उसके सम्बन्ध मे स्पष्टता और पूर्णता कर लोगे ।
मगलाकाक्षी धी०