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२०१ स्मरण कला
.. प्रश्न-एक बात को याद करना न चाहे तव भी याद आये तब क्या समझा जाए। - . . . . - 1 - --
उत्तर--मन का सामान्य सयोजन ही ऐसा है कि उपयोगी विषय याद रखें और बिना उपयोगी, विषय भूल जाएँ । यदि ऐसा न हो तो उपयोगी, निरुपयोगी संस्कार याद आते ही रहे तो आवश्यकता की बात पकडी नही जा सकती। इसलिये निर्धारित बात को स्मृति मे लाना हो तब दूसरी बाते याद न आये, यह बहुत अपेक्षित है। उदाहरण के लिये आठ वर्ष पूर्व घटी घटनो का सन्दर्भ याद करना हो तो बीच के वर्षों के समग्र विषय भूल कर उसे ही याद करना होता है, तभी वह वैसा बन सकता है। इसके बदले यदि मध्यवर्ती वर्षों के विषय याद आने लगे तो लाखो करोड़ो विषय एकत्रित हो जाएँ और उन समस्त का कालक्रम से चिन्तन करते हुए दूसरे आठ वर्ष और लग जाएं। इसलिये कोई भी कार्य करने के लिये विस्मरण की खास आवश्यकता है। - ----- , ' अगर मनोनिर्णीत विषयो मे सन्तुलन होता है तो जिसे याद करना न चाहे वह विषय याद न आये । यदि याद न करने योग्य विषय भी याद आते रहे तो यह मन के सन्तुलन की खराबी कही जायेगी। ऐसी खराबी बढ़ जाए तो. मनुष्य अस्वस्थ बन कर अत मे उन्माद का रोगी बन जाता है।' --: -
"तीव्र स्मरण शक्ति" और "याद नही करनी हो फिर भी कोई बात याद आये" इन दो बातों में महान भेद है। तीव्र स्मरण शक्ति मे नियत समय मे धारी हुई बाते बराबर याद आती है । और दूसरी स्थिति मे आवश्यकता हो अथवा नहो पर एक विषय याद आता है । इसलिये पहली स्थिति इष्ट है, पर दूसरी स्थिति किसी भी दशा में इष्ट नहीं है।
प्रश्न- एकांग्रता किसे कहा जाता है ? - . ....
उत्तर-मन की एक-वैषयिक चिन्तन स्थिरता को एकाग्रता कहा जाता है अर्थात् मन जब अन्य विषयो का विस्मरण करके कोई एक ही विषय का अवम्बन लेता है, तब मन एकाग्र हो गया, ऐसा कहा जाता है । उदाहरण के तौर पर अश्व पर मन को एकाग्र
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