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६० स्मरण कला
जादू करती हूँ कि उसकी समस्त शक्तियां जाग उठती है और वह इस तरह कार्य सलग्न हो जाता है कि पूछो मत ।"
इस समय हास्यदेव अपनी लाक्षणिक छटा से बोल उठे"और इसी से बिचारे जल जल कर खाक हो जाते हैं, और अन्त मे मान तथा माया दोनो ही खो देते हैं । हा हा !! हा ।।!"
समय पर महारानी कल्पना कुमारी का भव्य प्रवेश हुआ और समग्र मन्दिर उनके तेज से जगमगा उठा कहने की आवश्यकता नही कि उनके आगमन के साथ ही उत्सव का मगल कार्य प्रारम्भ हुआ। जो प्रतिक्षण वृद्धिगत होता हुआ महोत्सव के रूप में परिवर्तित हो गया। मनोमन्दिर मे आलोकित इस उत्सव की कहानी यही पूर्ण होती है, उसके साथ ही मेरा पत्र भी पूर्ण हो रहा है। मैं आशा करता हूँ कि तुम इस पत्र के परमार्थ को अवश्य पा सकोगे।
मगलाकाक्षी
धी०
मनन मन की सर्व शक्तियो मे कल्पना का अद्वितीय स्थान , उसके बिना नया प्रकाश उदीप्त नही होता।