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पत्र चौदहवाँ
साहचर्य
प्रिय बन्धु
अब तुम एक विषय पर ठीक-ठीक एकाग्र हो सकते हो और कल्पना के विकास के द्वारा बस्तुरो को मन में बरावर खड़ी कर सकते हो। इसलिए तुम्हे पहले की अपेक्षा अच्छा याद रहता है; परन्तु अब भी तुम्हारे लिए कई ऐसे सिद्धान्त जानने के है, कि जो स्मरण शक्ति की सहायता करने मे अति उपयोगी हैं। उनमे एक सिद्धान्त साहचर्य का है।
यह हमारे नित्य अनुभव की बात है कि दो-तीन मित्र वात पर डटे हुए हो तो तत्त्व ज्ञान से इतिहास पर, इतिहास से भूगोल पर, भूगोल से जन-स्वभाव पर, जनस्वभाव से खुराक पर, खुराक से रसोई, पर रसोई से रसोइये पर, रसोइये से महिलामो की आदत पर आ पहुँचते है । अथवा दो समान सहेलियाँ वार्ता-निमग्न हो तो शाक भाजी से दाल-भात पर, दाल भात से अनाज पर, अनाज से राशनिंग पर, राशनिंग से सरकारी नीति पर, और सरकारी नीति पर से पाकिस्तान की नीति पर उतर पड़ती है, इसका अर्थ यह है कि मनुष्य को एक बात याद आने पर उससे मेल खाती दूसरी बात भी याद आ जाती है और दूसरी बात याद आने पर उससे लगती तीसरी बात भी याद आ जाती है। इस प्रकार यह परम्परा क्रमशः लम्बाती ही चली जाती है ।
यह भी तुमने देखा होगा कि कोई बात याद न पा रही हो, पर अगर उनकी कोई एक कड़ी मिल जाए तो फिर क्रमश. समग्र वृत्तान्त याद आ जाता है ।