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६४१ स्मरण कला
कि-अट्टहास, करुण विलाप, अजब शूरता, भयंकर नीचता, असाधारण उदारता, अनुपम धैर्य, अति विचित्रता, बेजोड बेवकूफता आदि । लेखक, कवि, पत्रकार, कलाकार, राजद्वारी पुरुष और सन्त ये सभी कल्पना की विशेषता को लक्ष्य में रखकर ही अपनी-अपनी पद्धति से काम करते है। जिससे वे मानव समाज पर महान् प्रभाव डालते है।
मानस शास्त्रियों ने कल्पना के निम्नोक्त विभाग किये हैं१. उद्बोधक कल्पना--
जो भूतकाल की संज्ञाओ, प्रतीतियों, सस्कारों और अनुभवों को जागृत करती है। इसका सम्बन्ध स्पष्ट स्मरण-शक्ति के साथ है। २. योजनात्मक कल्पना--
जो किसी भी वस्तु के निर्माण की योजना प्रस्तुत करती है। छोटे और बडे नाट्य प्रयोग आदि इसी प्रकार की कल्पना के परिणाम हैं। उसमे मानव जीवन की छवि अंकित करने के लिए वेष, भाषा तथा रीति रिवाज की कल्पना कई प्रकार से की जाती है। ३. सर्जनात्मक कल्पना--
जो भूतकाल के अनुभवों को किसी नव्य प्रकार से प्रस्तुत करती है । जैसे कि-विविध प्रकार के काव्य, चित्र, शिल्प आदि । ४. हेत्वनुसारिणी कल्पना
जो किसी भी हेतु या ध्येय को पूर्ण करने के लिए एक व्यवस्था के रूप मे प्रस्तुत होती है। जैसे कि-मकानों की रूपरेखा, नक्शे आदि ।
५. अहेत्वनुसारिणी कल्पना--
जो किसी भी हेतु या बिना ध्येय मात्र मनोरजन के लिए प्रस्तुत होती है। बालको के खिलौने की कल्पना इसी प्रकार की होती है।