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स्मरण कला ३५
निकट का सम्बध है और रक्त को शुद्ध रखना तथा मन को स्वस्थ रखना यह भी इसी का काम है।
__ इस विषय के मर्मज्ञो का अभिमत है कि प्राण जब अपनी स्वाभाविक गति को छोड़कर बाँका-टेढा चलना शुरू करता है तब ही रोगो की उत्पत्ति होती है। खाँसी प्राण की विकृति का प्रथम चिह्न है । वीर्य का स्खलन तथा शक्ति का विनाश भी प्रारण की विक्रिया का ही प्रताप है।
अपने चारो तरफ वायुमण्डल में प्राण तत्त्व ठसाठस भरा हुआ है । पर उसका लाभ कितने लोग उठा पाते है?
यदि प्राण तत्त्व को उचित प्रकार से ग्रहण किया जा सके तो अनेक व्याधियाँ इस शरीर से अपने आप चली जाती है। परिणाम स्वरूप पैसा, समय की बर्बादी तथा व्यर्थ की तकलीफ से व्यक्ति बच जाता है। मुफ्त की कीमत कितनी है ? विज्ञ मनुष्य इसका प्रकन जरा भी कम नहीं करते है, योग्य लाभ उठाना चाहिये। . '
प्राणायाम यह श्वासोश्वास की कसरत है, जो हृदय और मस्तिष्क को उद्दीप्त करने के लिए बहुत उपयोगी हैं । अपने देश मे बहुत प्राचीन काल से उसका महत्त्व पहचाना गया है। इसलिए ही महर्षि पतजलि ने उसको योग के आठ अङ्गो मे चतुर्थ स्थान प्रदान किया है ।
प्राणायाम करने की पद्धति यह है कि सर्वप्रथम पद्मासन मे स्थिरता पूर्वक बैठना, फिर बायाँ हाथ वाये जानु पर सीधा लटकता रखना और दाहिना हाथ नाक के आगे लाकर उसकी चिटली अगुली नासिका के बाये भाग पर तथा अगूठा दक्षिण भाग पर रखना चाहिए। अब चिटली अंगुली से उस भाग को दबाकर मात्र दक्षिण नासिका के द्वारा ही श्वास लेना प्रारम्भ करना चाहिए। इस रीति से पूरा श्वास लिया जाए तब तक अंगूठे से दाहिनी नासिका वन्द रखनी चाहिए और श्वास को रोक