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स्मरण कला १४९
. विषय के यथार्थ-बोध के लिए पांचों इन्द्रियों को सजग रखने की अत्यन्त अपेक्षा है। इतना होने पर भी आँख और कान से अधिक विषय गृहीत होते हैं, इसलिए इन दोनों को ज्यादा सुरक्षित सजग रखने की अपेक्षा है। इन दो इन्द्रियों में कुछेक लोग चक्षु से विषय को खूब अच्छी तरह से ग्रहण कर सकते हैं और कितनेक कान से भली प्रकार ग्रहण कर सकते है। इसलिए जिसको जो इन्द्रिय अधिक अनुकूल हो उसे उस इन्द्रिय की अधिक सुरक्षा करनी चाहिए।
विषय चक्षु से बहुत अच्छी तरह ग्रहण किया जा सकता है या श्रवण से? यह जानने के लिए निम्नोक्त प्रयोग करके जांच लो।
दर्शन-परीक्षा । इसके लिए तीन पत्त तैयार करो। उनमें क्रमशः पक्तियों मे मोटे अक्षरो मे शब्द लिखो वे ' क्रमश बतायो। उनमें से कोई शब्द बोलो नही। एक पत्ते का निरीक्षण डेढ मिनट तक किया जा सकता है ? फिर उनमे से याद रहे शब्दो को कागज पर लिखो।
इस प्रकार तीन पत्त लिखने चाहियेप्रथम पत्र-टेबल, गाय, हडा, टोपी, दर्जी, स्वर्ण, अमरूद,
जलेबी। द्वितीय पत्र- अलमारी, भैंस, चमचा, नारगी, लोहा, हजाम,
बरफी, बाघ । तृतीय पत्र-कलम, नदी, सुथार, वरिणक, चर्खा, घट, चाकू,
झाड ।
श्रवरण परीक्षा इसमे भी ऊपर की तरह तीन पत्त तैयार करने चाहिए और हर एक को धीरे-धीरे वाचन करते हुए क्रपश शब्द सुनने चाहिए। प्रत्येक पत्र के लिए डेढ मिनट का समय लेना चाहिए। एक पत्ते के शब्द सुनने के बाद उन्हे एक अलग पत्र पर लिख लेना चाहिये।