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स्पररण कला
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इस तरफ रॉयबहादुर उत्साह भी पूरे ठाटबाट से अपने मित्र प्रयास, साहस, उद्यम, धैर्य और पराक्रम के साथ पाये। इन्होने भी अपने योग्य आसन ग्रहण कर लिए ।
- अब सभागृह ठसाठस भर गया था इसलिए सब प्रागन्तुक उत्सव प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा करने लगे। इसी समय वाणीदेवी ने खडे होकर' कहा-आप सबका सत्कार करते हुए मुझे अतीव प्रसन्नता हो रही है। आज का दिन धन्य है। आज की घडी घन्य है कि हमारे यहा इतने महान मेहमान पधारे है , परन्तु मुख्य अतिथि अब तक पधारे नही है, इसलिए उनको प्रतीक्षा कर रहे हैं । उनके आते ही उत्सव का कार्य प्रारम्भ हो जाएगा।
। ये शब्द सुनते ही सब मेहमान गहरे विचार मे पड़ गए और अन्दर ही अन्दर खोजने लगे कि कौन बाकी रहा है ? जबै उन्होने जाना कि कोई खास व्यक्ति बाकी नही रहा है. तब सबके समक्ष खडे होकर सशयदेव ने कहा-माननीय मेहमानो! मैं आप सबके समक्ष प्रस्ताव रखता हूँ कि आज के कार्य को प्रारम्भ होना चाहिए क्योकि मुझे लगता है अब कोई खास आवश्यक अतिथि बाकी नहीं रहा है।
इस अकल्पित प्रस्ताव को सुनकर बुद्धि देवी खडी हुई । उन्होने कहा-सद्गृहस्थो और सन्नारियो | इस मन्दिर की सर्व शोभा जिसकी आभारी है, वह महारानी कल्पना कुमारी अभी तक नही आयी है। प्रतिपल उनकी ही प्रतीक्षा है। मैं सोचती हूँ अब थोड़ी ही देर मे उनका आगमन होगा।
क्या इस मन्दिर की समग्र सजावट महारानी कल्पना कुमागे की आभारी है ' महाराज उत्साह के समूह मे गडगडाहट हुई। प्रयास, साहस, उद्यम, धैर्य और पराक्रम आदि को लगा कि अपमान हो रहा है। इनकी भावनाओ का पतन देखकर महाराज उत्साह ने खडे होकर कहा-सज्जनो। एव सन्नारियो ! बुद्धिदेवी का कथन सुनकर मुझे आश्चर्य होता है । इस भव्य भवन के निर्माण मे मेरे मित्र प्रयास, साहस, उद्यम, धैर्य, पराक्रम आदि ने महान् योगदान किया है। ये मन्दिर की मजबूत दीवारे विशाल द्वार और