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स्मरण कसा ५३
पनग (फतिंगा) रूर का दीवाना है। रूप को देखा कि वह बिना कोई विचार किए सीधा उसे भोगने के लिए दौडता है । दीपक को ज्योति उसके मन मे रूप की पराकाष्ठा है। इसी लिए वेग से उरकर जनमें पा लेता है और जलकर राख वन जाता है । परन्तु महान् प्राश्चर्य तो यह है कि एक पतंग को दीपक की ज्योति में चलना देखकर भी दूसरा पतग पाकर उसी प्रकार झपा लेता है और इस प्रकार ये रूप दीवाने जोहर व्रत स्वीकार करते हैं।