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४६ ३ स्मरण कला
डभोई और भावनगर आदि स्थानों में अवधान प्रयोग करते समय मैंने इस प्रकार के स्पर्श-प्रयोग प्रत्यक्ष करके बताये थे ।
रसनेन्द्रिय मे रस की तरतमता को परखने का जो गुण है, उसको भी अपने बहुत कम काम में लेते हैं । उसके द्वारा एक वस्तु को चखकर उसमें क्या-क्या वस्तुएँ कितने प्रमाण मे है-यह नहीं बता सकते । रसनेन्द्रिय का बराबर उपयोग करने वाले कितनेक वैद्य चूर्ण का स्वाद लेकर उसमे मिली बहुत सी वस्तुओ को बराबर बता सकते हैं।
कोई वस्तु मात्र मीठी है, खट्टी है, खारी है, कडवी है या तीखी है, इतना जानना ही बस नही; पर उसमे दूसरे रस भी कौन से २ रहे हुए हैं और कितने प्रमाण मे है, उसकी तुलना बार-२ करनी चाहिए, जिससे रस की परीक्षा बराबर की जा सके ।
नासिका के विषय में भी वैसा ही समझना चाहिए । अपने में से कितने मनुष्य ऐसे हैं जो मात्र गध के द्वारा ही वस्तुओं को पूरी तरह परख सकते हैं ? जो लोग नासिका-शक्ति का पूरा पूरा उपयोग करते हैं, वे दूर दूर की वस्तुओं को मात्र गध से परख लेते है । कस्टम अधिकारी लोग इसका एक प्रकार का नमूना होते है। वे गध के आधार पर ही सैकडो मनुष्यो में से किसके पास चरस या गाजा होना चाहिए-खोज निकाल लेते है ।
अनेक वस्तुप्रो की गध की तुलना करते रहने पर नासिका बरावर सजग बन जाती है।
यदि चक्षुत्रो का उपयोग सजगता से होता है तो वे दूर तक देख सकती है, बहुत अच्छी तरह से देख सकती है और बहुत जल्दी भी देख सकती है। खलासी ( जहाज का नौकर ) तथा पशुओ को पालकर आजीविका कमाने वाले लोगो को दृष्टि बहुत दूर तक पहुंचती है, क्योकि वे इस प्रकार के कार्य का अभ्यास करने वाले होते हैं। दूर के क्षितिज मे होने वाला छोटा सा फेर-फार भी उन्हे तूफान के आगमन की सूचना दे देता है।