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. ३०. स्मरण कला
नाटक-सिनेमा देखना, चाय-पानी पीना, ताश या जुआ खेलना आदि बुरी आदतों के कारण देर से उठने की कुटेव बढती चली जा रही है । इस कारण प्रातःकाल का पवित्र समय जिसे कि ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है, उसका यथेष्ट लाभ नहीं लिया जा सकता। सामान्य मनुष्य को सात घण्टे की नींद काफी है। कुछ साधक उतनी ही ताजगी पांच-साढे पाँच घण्टे की नीद से भी प्राप्त कर लेते है। इसमे मुख्य बात यह है कि जो नीद ली जाए, वह दिमाग को शान्त करने वाली होनी चाहिए। अनेक साहित्यस्वामी, वैज्ञानिक और राज्याधिकारी पुरुष इस रीति से स्वल्प पर सुखद निद्रा लेकर, कार्य करने के लिये काफी समय बचा लेते है जो उनके अग्रिम जीवन मे यश और लाभ देने मे
उपयोगी सिद्ध होता है । १०. शरीर मे से तमोगुण का प्रमाण बहुत घटने के बाद अल्पनिद्रा
भी पूरी विश्रामदायक साबित होती है। योग सिद्ध पुरुष नीद लेते ही नही है। वैसा होने पर भी उनकी शारीरिक और
मानसिक स्थिति सन्तुलित और सुदृढ़ बनी रहती है। ११ शीघ्र उठकर तुम्हे क्या-क्या करना है, यह भी समझ लेने की
आवश्यकता है। उनका क्रम साधारणतया निम्नलिखित बनाया जा सकता है(क) उठते ही कुछ मिनटो तक इष्टदेव का स्मरण करना । (ख) वह पूर्ण होते ही ॐकार का जप करना।
श्री छान्दोग्य-उपनिषद् मे ॐकार की महत्ता का वर्णन करते हुए कहा है- .
यथा शड कुना सर्वाणि पर्णानि सन्तृणान्येव ॐड कारेण सर्वावाक् सन्तृणोकार एवेदं सर्वम् ।
ॐकार का अर्थ पृथक् पृथक् अनेक प्रकार से किया गया है, परन्तु उसका सर्व सामान्य अर्थ परमात्मा है । इसलिए उसका जाप कोई साम्प्रदायिक क्रिया नही है पर आत्म शुद्धि का परम मार्ग है।