________________
सप्तम पत्र
साधक की परिचर्या (१)
प्रिय बन्धु !
स्मरण-शक्ति के विकास के इच्छुक व्यक्ति को किस प्रकार की परिचर्या रखनी चाहिए, उसके कुछ नियम इस पत्र मे दे रहा हूँ। १. योग और अध्यात्म का गहरा अनुभव रखने वाले भारत के
महर्षियो ने छान्दोग्य-उपनिषद् मे कहा है कि 'सत्त्व शुद्धौ ध्र वा स्मृतिः' सत्त्व की शुद्धि होने पर अखण्ड स्मृति की प्राप्ति होती है।' इस आर्ष वचन का व्यापक अर्थ शरीर और मन इन दोनो को पवित्रता अथवा नीरोग दशा है क्योकि स्मृति सुधार
के लिए शरीर और मन की अवस्था नीरोग होना अभीष्ट है । २ शरीर जब नीरोग हो, इन्द्रियाँ जब पूरी तरह सजग और स्वस्थ
हो, तव ज्ञान-तन्तु बरावर सक्रिय होते है। इसी कारण उस समय जो कुछ ग्रहण करने मे आता है वह सम्यक् प्रकार से याद
रह जाता है। ३ स्वस्थ शरीर वाला साधक एक पासन मे दीर्घ समय तक बैठ
कर अपने विषय मे एकाग्र हो सकता है। जबकि छोटे-मोटे रोग वाले को बार-वार थूकने के लिए उठना पडता है । पैरो को पसारना और संकुचित करना पड़ता है। आलस मरोडना पडता है। इसलिए वे दीर्घ समय तक एक आसन मे नही बैठ
सकते हैं । वैसे ही अपने विषय मे एकान भी नही हो पाते हैं। ४ कितने ही रोग ऐसे होते है जो स्मृति पर सीधा असर डालते
है । उदाहरण के तौर पर हार्ट का दर्द (फेफड़े का अपस्मार).