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श्राद्धविधि प्रकरण बढ़ता है वैसे ही रानी का गर्भरत्न भी प्रतिदिन वृद्धि पाने लगा और उसके प्रभावसे उत्पन्न होनेवाले प्रशस्त धम संबंधी मनोरथों को राजा संपूर्ण सन्मान पूर्वक पूर्ण करने लगा। क्रमसे नव मास पूर्ण होनेपर जिस तरह पूर्व दिशा पुर्णिमाके रोज पूर्ण चंद्रको जन्म देती है वैसेही शुभ लग्न और मुहूर्तमें राणीने अत्युत्तम लक्षण युक्त पुत्र को जन्म दिया। राजा लोगों की यह एक मर्यादा ही होती है कि पटराणी के प्रथम पुत्र का जन्ममहोत्सव विशेषतासे करना । तदनुसार कमलमाला राणी पटराणी होनेके कारण उसके इस बड़े पुत्रका जन्म महोत्सव राजाने सर्वोत्कृष्ट ऋद्धिद्वारा किया। तीसरे दिन उस बालकके चंद्र सूर्य दर्शनका महोत्सव भी अति उमंग से किया गया । एवं छठे दिन रात्रि-जागरण महोत्सव भी बड़े ठाटमाट के साथ मनाया गया। तोतेकी प्राप्ति का स्वप्न आने से ही पुत्रकी प्राप्ति हुई है, इसलिए स्वप्नके अनुसार राजाने उस पुत्रका नाम शुकराज रक्खा । स्नेह पूर्वक उस बालक शुकराजको स्तन्य पान कराना, खिलाना, हसाना, स्नान कराना, प्रेम करना, इस प्रकार पांच धाय माताओं से पालित पोषित होता हुवा इस प्रकार वृद्धिको प्राप्त होने लगा जैसे कि पांच सुमतियोंसे संयमकी वृद्धि होती है। उस बालककी तमाम क्रीडायें माता पिता आदि सजन धर्गको आनंद दायक होने लगी। उस बच्चे का तुतलाकर बोलना सचमुच ही एक शोभा रूप हर्षका स्थान था। वस्त्र आदिका पहनना माता पिताके चित्तको आकर्षण करने लगा। इत्यादिक समस्त कृत्य माता पिताके हर्षको दिन दूना और रात चौगुणा बढ़ाने लगे। अब वह राजकुमार सर्व प्रकारके लालन पालनके संयोगों में वृद्धि पाता हुआ पांच वर्षका हुआ। उस पुण्य-प्रकर्ष वाले कुमारका भाग्य प्रताप साक्षात् इंद्रके पुत्रके समान मालूम होता था। वह बालक होनेपर भी उसके बचनकी चातुर्यता और वाणीकी माधुर्यता इस प्रकार मनोज्ञ थी कि प्रौढ़ पुरुषोंके मनको हरण करती थी। वह बचपनसे ही अपने वचन माधुर्य आदि अनेक गुणोंसे सजन जनोंको अपनी तरफ आकर्षित करने लगा। अर्थात् वह अपने गुणोंसे समस्त राज्य कुलके दिलमें प्रवेश कर चुका था। ... एकदिन वसंत ऋतु में पुष्पों की सुगंधी से सुगंधित और फूल फलसे अति रमणीय वनकी शोभा देखनेके लिए राजा अपनी कमलमाला महारानी और बालक कुमारको साथ लेकर नगरसे बाहर आ उसी आम्र बृक्ष के नीचे बैठा कि जहां पूर्वोक्त घटना घटी थी । उस वक्त राजाको पूर्वकी समस्त घटना याद आ जानेसे प्रसन्न होकर महाराणीसे कहने लगा कि, हे प्रिये ! यह वहो आम्र वृक्ष है कि जिसके नीचे मैं वसंत प्रतमें आकर बैठा था और तोतेकी वाणीसे तेरा स्वरूप सुनकर अति वेगसे उसके पीछे पीछे दौड़ता हुआ मैं तैरे पिताके आश्रम तक जा पहुंचा था। वहांपर तेरे साथ लग्न होनेसे मैंने अपने आपको कृतार्थ किया। यह तमाम वृत्तांत अपने पिता मृगध्वज राजाकी गोदमें बैठा हुआ शुकराज कुमार सुन रहा था। यह वृत्त सुनते ही शुकराजकुमार चैतन्यता रहित होकर इसप्रकार जमीन पर धुलक पड़ा कि जैसे अधकटे वृक्षकी शाखा किसी पवन वेगसे गिर पड़ती है। यह देखकर अत्यन्त व्याकुलता और घबराहटको प्राप्त हुए उस बालकके माता पिता कोलाहल करने लगे, इससे तमाम राजवर्गीय लोक वहां पर एकदम आ पहुंचे और आश्चर्य पूर्वक कहने लगे हा ! हा! अरे ! यह क्या हुआ ? इस बनावसे तमाम लोक आकुल व्याकुल हो उठे,