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समवाय३ HANKA RMATHATANTRATIMATERNATANTRAMATATUNITARITMANANTHANIAMITTINAMITTTTTTARATION जाने पर शरीर के लिए दु:खदायी होते हैं, उसी तरह जो आत्मा के लिये दुःखदायी हों, उन्हें भाव शल्य कहते हैं। भाव शल्य तीन कहे गये हैं यथा - १. माया शल्य - कपट भाव रखना। २. निदान शल्य - तप संयम आदि धर्म क्रिया के फल स्वरूप इहलौकिक पारलौकिक ऋद्धियों की कामना करना। ३. मिथ्यादर्शन शल्य - विपरीत श्रद्धा होना। गारव या गौरव - वज्र आदि की गुरुता (भारीपन) द्रव्य गौरव है। अभिमान और लोभ से होने वाला आत्मा का अशुभ परिणाम भाव गौरव है। गौरव तीन कहे गये हैं यथा - १. ऋद्धि गौरव - इन्द्र नरेन्द्र आदि से पूज्य आचार्य आदि की ऋद्धि का अभिमान करना अथवा उनकी प्राप्ति की इच्छा करना। २. रस गौरव - रसना इन्द्रिय के विषय मधुर आदि रसों की प्राप्ति से अभिमान करना या उनकी इच्छा करना। ३. साता गौरव - साता स्वस्थता आदि शारीरिक सुखों की प्राप्ति होने से अभिमान करना या उनकी इच्छा करना। विराधना - ज्ञानादि का सम्यक् रीति से आराधन न करना, उनका खण्डन करना और उनमें दोष लगाना। वह विराधना तीन प्रकार की कही गई है। यथा - १. ज्ञान विराधना - ज्ञान और ज्ञानी की आशातना करना, अपलाप आदि द्वारा ज्ञान का खण्डन करना। २. दर्शन विराधना - जिन वचनों में शंका कांक्षा आदि द्वारा समकित की विराधना करना। ३. चारित्र विराधना - सामायिक आदि चारित्र की विराधना करना। मृगशिर, पुष्य, ज्येष्ठा, अभिजित, श्रवण, अश्विनी और भरणी, ये सात नक्षत्र तीन-तीन तारों वाले कहे गये हैं। इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नैरयिकों की स्थिति तीन पल्योपम कही गई है। दूसरी नारकी में नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम कही गई है। तीसरी नरक में नैरयिकों की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम कही गई है। असुरकुमार देवों में से कितनेक देवों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है। असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियों की अर्थात् देवकुरु उत्तरकुरु के युगलिक तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है। असंख्यात वर्ष की आयु वाले अर्थात् देवकुरु उत्तरकुरु के युगलिक संज्ञी गर्भज मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है । सौधर्म और ईशान अर्थात् पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है। सनत्कुमार और माहेन्द्र अर्थात् तीसरे और चौथे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति तीन सागरोपम की कही गई है। जो देव आभङ्कर, प्रभङ्कर, आभङ्करप्रभङ्कर, चन्द्र,
ॐ भरत और ऐरवत क्षेत्र में भी सुषम सुषमा आरे में युगलिक तिर्यंच पंचेन्द्रिय और गर्भज मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की होती है।
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