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जैन विद्या के आयाम खण्ड ६
अनुदित ग्रंथों से ही काम चलाना चाहती थी पर आपको पैनी दृष्टि से मेरी चोरी छुपी न रहती, फिर धीरे-धीरे आपकी प्रेरणा से मैंने इतनी प्राकृत सीख ली कि अपने शोध के लिये मूलग्रंथ पढ़ सकूं। आपके निर्देशन में न केवल मैने अपना शोधप्रबन्ध पूर्ण किया बल्कि दो और शोधपूर्ण ग्रंथ लिख डाले ।
डॉ० साहब और उनकी पत्नी श्रीमती कमला जी सच्चे सुश्रावक हैं, जो भी उनके संपर्क में आता है उनके परिवार का अंग हो जाता है। साधु-साध्वी हो, विद्यार्थी हो या सहयोगी, सबका स्वागत सत्कार आप खुले हृदय से करते हैं। मुझे उनका आन्तरिक स्नेह मिला यह मेरा सौभाग्य है। उनकी पत्नी जिन्हें मैं भाभी जी कहती हूँ ने तो मुझे अपने प्रीतिभाजन स्वजन के रूप में स्वीकार कर लिया है। उनके यहाँ जब भी कोई विशिष्ट व्यंजन बनता मेरा बुलावा हो जाता और प्रतिदिन उनके हाथ से गरमा गरम चाय का लोभ मैं संवरण न कर पाती, चार बजते-बजते मेरे कदम उनके घर की ओर उठने लगते ।
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पार्श्वनाथ विद्याश्रम के निदेशक की हैसियत से शोध कार्यों के साथ-साथ शिक्षार्थियों की शिक्षण व्यवस्था और कार्यालय के प्रबन्धन का भार भी वहन करते थे। निदेशक होते हुये भी अध्यापन का जितना भार अन्य सहयोगियों को देते थे उनसे कहीं अधिक भार स्वयं वहन करते थे कार्य के प्रति जितने स्वयं समर्पित हैं ऐसी ही औरों से भी आशा करते हैं। प्रबन्ध की अव्यवस्था सहन नहीं कर पाते थे अनुसाशन चाहते हुये भी किसी पर कठोर अनुशासनात्मक कारवायी नहीं कर पाते, अन्दर ही अन्दर स्वयं दुःखी होते रहते । शुष्क प्रशासन डॉ० साहब के स्वभाव के प्रतिकूल है । उसमें उनकी सहज प्रफुल्लता भी मेघाछिन्न हो जाती है। वह स्वयं भी कहते हैं कि पढ़ने-पढ़ाने के मुकाबले में यह प्रशासनिक कार्य मुझे थका देते हैं ।
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परिस्थितियों को बदलना और पुरुषार्थ के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहना डॉ० साहब के व्यक्तित्व के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। व्यवसायी परिवार में जन्म लने वाले सरस्वती के उपासक डॉ० साहब ने आरम्भिक अवस्था में प्रतिकूल परिस्थितियों मे भी अपनी निरन्तर बढ़ती हुई ज्ञान-पिपासा को तृप्त किया और विद्या के प्रति आदर एवं निष्ठा के साथ जैन वाङ्मय का गहन अध्ययन किया। आज वे जैन विद्या के शीर्षस्थ विद्वानों में से हैं ।
अध्ययन, मनन और लेखन की दृष्टि से पार्श्वनाथ विद्यापीठ का कार्यकाल आपके लिये एवं संस्था के लिये बहुत ही लाभप्रद सिद्ध हुआ । आपके चिन्तन में ओजस्विता और तेजस्विता का अद्भुत समन्वय है। जैन परंपरा के आगम एवं दर्शन ग्रंथों के साथ-साथ भारतीय दर्शन की विभिन्न शाखाओं का भी गहरा अध्ययन है आपका दृष्टिकोण तुलनात्मक है । आप किसी एक धर्म या सम्प्रदाय की सीमा से आबद्ध अध्ययन को संकीर्णता मानते हैं। प्रज्ञा चिन्तन एवं अनुभव की गहनता, संवेदना की सूक्ष्मता, भावों की तरलता एवं कोमलता, भावों की तरलता एवं कोमलता, सृजनात्मक चेतना, मौलिक दृष्टि, पुरातन और नूतन का समन्वय, वस्तु तत्त्व का निष्पक्ष प्रतिपादन आदि आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषतायें है।
आपने अपनी मेधा और प्रशा से सभी धर्मों का सुन्दर समन्वित रूप प्रस्तुत करने में अनेकों शोधार्थियों का मार्ग दर्शन किया है। जैन दर्शन के गंभीर ग्रंथों का सरल, सुबोध एवं जन-मानस ग्राह्य विवेचन करने की आपकी अद्भुत क्षमता है। दर्शन जैसे नीरस विषयों को भी जिस प्रकार रोचक बनाकर पढ़ाते हैं उससे इनके व्यक्तित्व में विद्या सम्पन्न अध्यापक का दिव्य दर्शन होता है। मुझे साध्वीवृंद, शोधार्थियों और विद्यार्थियों के साथ आपसे आचारांग सूत्र, तत्त्वार्थसूत्र और अन्य दर्शन ग्रंथ पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। जब इन गम्भीर ग्रंथों पर व्याख्यान देते हैं तो आपकी प्रज्ञा और विवेचन क्षमता मुखरित हो उठती है, आप अनुभवसिद्ध युक्तियों द्वारा ऐसा समाधान करते और इस तरह समझाते कि कठिन से कठिन विषय भी उस समय हृदयंगम हो जाता है। जैन धर्म की विभिन्न शाखा प्रशाखाओं का ऐतिहासिक दृष्टि से विश्लेषण करते हुये आगमीय सत्यों के आधार पर ऐसे नये संकेत सूत्र देते हैं, जो आधुनिक समस्याओं के समाधान में भी खरे उतरते हैं।
डॉ० साहब द्वारा रचित साहित्य बड़ा समृद्ध और विपुल है, आपके शोध ग्रंथों तथा निबन्ध साहित्य, संस्कृति, धर्मदर्शन, इतिहास आदि के क्षेत्र में मौलिक चिन्तन से ओत-प्रोत हैं। आपको चिंतन शैली दूरदर्शिता पूर्ण सांप्रदायिक अभिनिवेशों
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