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कुछ विद्वानोंका खयाल है कि सम्यग्दर्शनकी महिमावाले पद्योंमें कितने ही पद्य क्षेपक हैं । उनकी रायमें या तो वे सभी पद्य क्षेपक हैं जो छंद परिवर्तनको लिये हुए-३४ वें पद्यके बाद परिच्छेदके अन्त तक-पाये जाते हैं और नहीं तो वे पद्य क्षेपक जरूर होने चाहिये जिनमें उन्हें पुनरुक्तियाँ मालूम देती हैं । इसमें संदेह नहीं कि ग्रन्थमें ३४ वें पद्यके बाद अनुष्टुपकी जगह आर्या छंद बदला है। परंतु छंदका परिवर्तन किसी पद्यको क्षेपक करार देनेके लिये कोई गारंटी नहीं होता। बहुधा ग्रन्थोंमें इस प्रकारका परिवर्तन पाया जाता हैखुद स्वामी समंतभद्रके 'जिनशतक' और 'वृहत्स्वयंभू स्तोत्र' ही इसके खासे उदाहरण हैं जिनमें किसी किसी तीर्थकरकी स्तुति भिन्न छंदमें ही नहीं किन्तु एकसे अधिक छंदोंमें भी की गई है। इसके सिवाय यहाँ पर जो छंद बदला है वह दो एक अपवादोंको छोड़कर बराबर ग्रन्थके अंत तक चला गया हैग्रन्थके बाकी सभी परिच्छेदोंकी रचना प्रायः उसी छंदमें हुई है और इस लिये छंदाधार पर उठी हुई इस शंकामें कुछ भी बल मालूम नहीं होता । हाँ पुनरुक्तियोंकी बात जरूर विचारणीय है यद्यपि केवल पुनरुक्ति भी किसी पद्यको क्षेपक नहीं बनाती तो भी इसे कहनेमें हमें जरा भी संकोच नहीं होता कि स्वामी समन्तभद्रके प्रबन्धोंमें व्यर्थकी पुनरुक्तियाँ नहीं हो सकतीं । इसी बातकी जाँचके लिये हमने इन पद्योंको कई बार बहुत गौरके साथ पढ़ा है परन्तु हमें उनमें जरा भी पुनरुक्तिका दर्शन नहीं हुआ । प्रत्येक पद्य नये नये भाव और नये नये शब्दविन्यासको लिये हुए हैं । प्रत्येकमें विशेषता पाई जाती है—हर एकका प्रतिपाद्यविषय सम्यग्दर्शनका माहात्म्य अथवा फल होते हुए भी अलग अलग है और सभी पद्य एक टकसालके-एक ही विद्वान द्वारा रचे हुए—मालूम होते हैं। उनमेंसे किसी एकको अथवा किसीको भी क्षेपक कहनेका साहस नहीं होता । मालूम नहीं उन लोगोंने कहाँसे इनमें पुनरुक्तियोंका अनुभव किया है। शायद उन्होंने यह समझा हो
और वे इसी बातको कहें भी कि 'जब ३५ वें पद्यमें यह बतलाया जा चुका है कि शुद्ध सम्यदृष्टि जीव नारक, तिर्यंच, नपुंसक और स्त्री पर्यायोंमें जन्म नहीं लेता, न दुष्कुलोंमें जाता है और न विकलांग, अल्पायु तथा दरिद्री ही होता है तो इससे यह नतीजा सहजही निकल जाता है कि वह मनुष्य और देवपर्यायोंमें जन्म लेता है, पुरुष होता है, अच्छे कुलोंमें जाता है। साथ ही धनादिककी अच्छी अवस्थाको भी पाता है। और इस लिये मनुष्य तथा देव पर्या
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