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संसार : एक साधना-स्थली
आधार और आधेय ___ इस अपार अवनि अचल में निवास करनेवाले प्रत्येक जीवधारियो की अभिरुचियां भिन्नभिन्न ही हुआ करती हैं। किसी को क्या पसन्द, तो किसी को क्या अभीष्ट लगता है। इसी तरह रग-रूप, रीति-रिवाज, रहन-सहन, धर्म-कर्म, एव मान्यता आदि मे भी अनेको प्रकार की विषमता पाई जाती है। कहा भी है-'भिन्नरुचिर्लोकः' ।
कतिपय मानवो की मान्यता के अनुसार यह विराट् विश्व केवल असारता एव बुराइयो का अखाडा है, तो दूसरी धारा ससार को भलाई का भाजन अभिव्यक्त करती हुई उपादेय मानती है और तीसरी धारा के हिमायती गण भलाई-बुराई उभयात्मकरूपेण ससार का चित्रण प्रस्तुत करते हैं । इस प्रकार विभिन्न मन्तव्यो का अजस्र प्रवाह चिरकाल से वहता चला आ रहा है।
कुछ भी हो, परन्तु इस अखिल वसन्धुरा प्रागण को माधनास्थली मान भी लिया जाय तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी । अर्थात्-~~-जहाँ अनत-अनत साधक-समूह परिपक्व एव शुद्ध-विशुद्ध चिर साधना के तीक्ष्ण एव कठोर पथ पर अग्रसर होकर आधि-व्याधि-उपाधि त्रय तापो का अत कर सर्वोत्तम विदेह (मोक्ष) दशा को प्राप्त हुए हैं । जिसकी साक्षी मे चमकता एव दमकता अतीत का जीता जागता इतिहास पुकार रहा है।
जहाँ सर्वप्रथम भगवान् ऋपभदेव ने सम्यक् साधना के बल पर सर्वोपरि तत्वो को प्राप्त किया, जहा कपिल, पतजलि, कणाद एव गौतम ऋपि ने ज्ञान-साधना साधी, जहा जैमिनी ऋपि ने कर्म काण्ड की उपासना की, जहा व्यास ऋषि ने वेदान्तो का विस्तृत विश्लेषण-विवेचन प्रस्तुत किया, जहाँ पुरुषोत्तम राम न्याय, नीति एव सत्य-सेवा सुरक्षा हेतु घोरातिघोर मार्ग का अनुसरण कर जयवत हुए और जन-मन मे एक नई चेतना फूकी, जहा योगीश्वर कृष्ण ने विभिन्न प्रकार की योगाराधना अराधी, जहा भ० वर्धमान ने जप-तप एव रत्न-त्रय की समीचीन साधना साधी और शुद्ध निरजन-निराकार अवस्था को प्राप्त हुए और जहा गौतम बुद्ध ने मध्यम मार्ग एव क्षणवाद की साधना करके, वौद्ध धर्म की नीव खडी की थी। इस प्रकार अगणित निन्थ परम्परा के और इतर यति-ऋपि एव साधक समूह अपनी-अपनी मान्यता श्रद्धा-भक्ति शक्त्यनुसार साधना-रत्नाकर मे अवगाहित हुए और करणी कथनी के अनुसार यथेष्ट फल को प्राप्त हुए है।
__ वर्तमान युग मे भी लाखो करोडो नर-नारी तो क्या, पर यह विराट विश्व ही रात-दिन एक लम्वी साधना के पथ पर द्रुतगति मे प्रयाण कर रहा है। हा, कोई देश समाज एव सघ-सेवा माधना मे तन्मय है, तो कोई इन्द्रिय-सुख-सुविधा साधना मे, कोई योगाभ्यास मे तल्लीन है तो कोई अर्थ उपासना मे तो कोई जमीन जायदाद की साधना मे दत्तचित्त है। परन्तु किसी न किसी रूप में माधना साध रहे हैं। एक चोर लुटेरा-लफगा है, वह भी पहले कुछ न कुछ कला (माधना) का प्रशिक्षण ग्रहण करता है । तद