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- ये दीन एवं असहाय प्राणी
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चमड़ा, ऊन आदि कुछ वस्तुएँ बिना हिंसा के भी मिल सकती हैं, किन्तु वे उतनी मुलायम और सुन्दर नहीं होती। इसलिए निर्दोष होते हुए भी लोग उन्हें पसन्द नहीं करते। जैनी एवं अहिंसा प्रेमी सजनों का कर्तव्य है कि जहां तक हो आवश्यक वस्तुओं में उन्हीं का उपयोग करे जो निर्दोष अथवा अल्प दोष वाली हो। जिनके लिए बेइन्द्रियादि त्रस जीवों की हिंसा हो, उन वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए।
ढोल, नगाड़े, नोबत, तबला आदि मढ़ने के लिए जीवित पशु की हत्या की जाती है, तभी ये वादिन्त्र बनते हैं और इनसे गंभीर ध्वनि निकलती है। देव-मंदिरों में भी इनका उपयोग होता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि हिंसा से निर्मित इन साधनों को जैन-मंदिरों में भी स्थान मिला है और उनके द्वारा वीतराग जिनेश्वर भगवंतों की भक्ति होना माना जा रहा है। - शंख, शीप और मोती के लिए बेइन्द्रियादि जलचर प्राणियों का वध होता है।
ये दीन एवं असहाय प्राणी .. अण्णेहिं य एवमाइएहिं बहुहिं कारणसएहिं अबुहा इह हिंसंति तसे पाणे इमे य
एगिदिए बहवे वराए तसे य अण्णे तयस्सिए चेव तणुसरीरे समारंभंति। अत्ताणे, असरणे, अणाहे, अबंधवे, कम्मणिगड-बद्ध, अकुसलपरिणाममंदबुद्धिजणदुविजाणए, पुढविमए, पुढविसंसिए, जलमए, जलगए, अणलाणिलतण-वणस्सइंगणणिस्सिए य तम्मयतजिए चेव तयाहारे तप्परिणय-वण्ण-गंध-रस-फास-बोंदिरूवे अचक्खुसे चक्खुसे य तसकाइए असंखे थावरकाए य सहुम-बायर-पत्तेय-सरीरणामसाहारणे अणंते हणंति अविजाणओ य परिजाणओ य.जीवे इमेहि विविहेहि कारणेहि।
शब्दार्थ - एवमाइएहि - इसी प्रकार के, य - और भी, अण्णेहि - अन्य, बहुहि - बहुत-से, कारणसएहि - सैकड़ों कारणों से, अबुहा - अबूम-अज्ञानी जीव, छ- इस संसार में, तसे पाणे - प्रस प्राणियों की, हिसति - हिंसा करते है, प-और, इमे बराए - पे बिचारे, बहवे - बहुत से, एगिदिएएकेन्द्रिय प्राणी, बेव- तथा, तयस्सिए - तदाश्रित, तणुसरीर - छोटे शरीर वाले, अण्णे - दूसरे, तसेत्रस प्राणी का, समारंभंति - समारम्भ करते हैं, अत्ताणे असरणे - वे जीव त्राण और शरण से रहित हैं; अणाहे - अनाथ है, अबंधवे - जिनका कोई बान्धव नहीं है, कम्मणिगडबद्ध - अपने कर्मों की बेड़ी में बंधे हुए, अकुसलपरिणाम-मंदबुद्धिजणदुविजाणए - शुभ परिणाम-अनुकम्पा भाव से रहित एवं मन्दबुद्धि वाले जीवों को इन जीवों का ज्ञान ही नहीं है।
पुढविमए - पृथ्वीकाय वाले, पुढविसंसिए - पृथ्वी के आश्रय रहे हुए, जलमए - जलकाय वाले,
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