________________
अर्धमागधी ७३३ साइक्लोस्टाइल प्रति ) ने मगध के अर्ध भाग में बोली जानेवाली अथवा अठारह देशीभाषाओं से नियत भाषा को (मगहद्धविसयभासानिबद्धं अद्धमागह, अहवा अट्ठाइसदेसीभासाणियतं अद्धमागहं ) अर्धमागधी कहा है | नवांगी टीकाकार अभयदेव के अनुसार इस भाषा में कुछ लक्षण मागधी के और कुछ प्राकृत के पाये जाते हैं, इसलिये इसे अर्धमागधी कहा जाता है (मागधभाषालक्षणं किंचित् , किंचिच्च प्राकृतभाषालक्षणं यस्यामस्ति सा अर्धमागध्याः इति व्युत्पत्त्या)। हेमचन्द्र ने यद्यपि जैन आगमों के प्राचीन सूत्रों को अर्धमागधी में लिखें हुए (पोराणमद्धमागहभासानिययं हवइ सुत्तंप्राकृतव्याकरण ८,४,२८७ वृत्ति) बताया है, लेकिन अर्धमागधी के नियमों का उन्होंने अलग से विवेचन नहीं किया । मागधी के नियम बताते हुए प्रसंगवश अर्धमागधी का भी एकाध नियम बता दिया है। जैसे कि मागधी में र का ल और स का श हो जाता है, तथा पुल्लिंग में कर्ताकारक एकवचन एकारान्त होता है (जैसे कतरः-कतरे ); अर्धमागधी में भी कर्ताकारक एकवचन में ओ का ए हो जाता है, लेकिन र और स में यहाँ कोई परिवर्तन नहीं होता। मार्कण्डेय के मत में शौरसेनी के
१. मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाटक, द्रविड़, गौड, विदर्भ आदि देशों की भाषाओं को देशीभाषा नाम दिया गया है (बृहत्कल्पभाष्य, २, पृ० ३८२)। कुवलयमाला में १८ देशीभाषाओं का स्वरूप बताया गया है, देखिये इस पुस्तक का छठा अध्याय ।
२. भगवती ५.४; ओवाइय टीका ३४। .
३. पिशल ने प्राकृतभाषाओं का व्याकरण (पृ. २८-९) में बताया है कि अर्धमागधी और मागधी का संबंध अत्यन्त निकट का नहीं है। लेकिन उनके अनुसार तव शब्द का व्यवहार दोनों ही भाषाओं में षष्ठी के एकवचन के रूप में व्यवहृत होता है; यह रूप अन्य प्राकृत भाषाओं में नहीं मिलता।