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26. वचन दी हुई (बात) के पालन में सज्जन पुरुषों का जो होता है,
वह हो, (कोई बात नहीं) यदि शीश काट दिया जाए, (यदि) बन्धन हो जाए (तथा) (यदि) पूर्णतः लक्ष्मी छोड़ दे।
27.
स्नेह के लिए (इस जगत में) (कुछ भी) अलंघनीय (कठिन) नहीं है; समुद्र भी पार किया जाता है, प्रज्वलित अग्नि में (भी) प्रवेश किया जाता है (तथा) मरण (भी) स्वीकार किया जाता है।
तीनों लोकों में केवल अकेले चन्द्र-प्रकाश के द्वारा स्नेह व्यक्त किया गया है, (क्योंकि) जो (वह) (प्रकाश) क्षीण चन्द्रमा में क्षीण होता है (तथा) बढ़ते हुए (चन्द्रमा) में बढ़ता है।
29. जगत में सागर और चन्द्रमा का किया हुआ (स्नेह) निर्वाह शोभता
है। (चन्द्रमा के) क्षीण होने पर (सागर) सदा क्षीण होता है (तथा) (चन्द्रमा के) बढ़ते हुए होने पर (सागर) विशेष प्रकार से (सदा) बढ़ता है।
30.
जैसे चन्द्रमा और (चन्द्र-विकासी) कमल-समूहों के (मध्य में) (किया हुआ) (स्नेह) (होता है), (वैसे ही) पूर्व सम्बन्ध से जीव का जिसके साथ किया हुआ (स्नेह) होता है, (वह जीव) दूरस्थित (भी) दूर नहीं (होता है)।
31.
पूर्व में (आपस में) मिले हुए सज्जन चित्तों के लिए दूर स्थित (रहना) (भी) दूर (जैसा) नहीं (होता है)। (यह ज्ञातव्य है कि) गगन में स्थित भी चन्द्रमा कमल-समूहों को आश्वासन देता है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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