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6.
सुयणो
सुद्धसहाव
मइलिज्जतो
वि
दुज्जजण
छारेण
दप्पणो
विय
अहिययरं
निम्मलो
होइ
7.
सुयणो
न
कुप्पइ
च्चिय
अह
कुप्पइ
मंगलं
न
चिंतेइ
अह
चिंतेइ
न
जंपड़
अह
जंपड़
लज्जिरो
होइ
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( सुयण) 1 / 1
[ (सुद्ध) वि - (सहाव ) 1 / 1] वि]
( मइल) कर्मवकृ 1 /1
अव्यय
[ ( दुज्जण) - ( जण ) 3 / 1]
(छार ) 3 / 1
(दप्पण) 1 / 1
अव्यय
( अहिययर) 1 / 1 तुवि
( निम्मल) 1 / 1 वि
(हो) व 3 / 1 अक
(सुयण) 1 / 1
अव्यय
(कुप्प ) व 3 / 1 सक
अव्यय
अव्यय
(कुप्प) व 3 / 1 सक
(मंगुल) 2 / 1
अव्यय
( चिंत) व 3 / 1 सक
अव्यय
( चिंत) व 3 / 1 सक
अव्यय
(जंप) व 3 / 1 सक
अव्यय
(जंप) व 3 / 1 सक
( लज्जिर) 1 / 1 वि
(हो) व 3 / 1 अक
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सज्जन
उज्ज्वल स्वभावी
मलिन किया जाते हुए
भी
दुर्जन मनुष्य के द्वारा.
क्षार के द्वारा
दर्पण
जैसे
और भी अधिक
निर्मल
हो जाता है।
सज्जन
नहीं
क्रोध करता है
भी
यदि
क्रोध करता है
अनिष्ट
नहीं
सोचता है
नहीं
सोचता है
नहीं
बोलता है
यदि
बोलता है
लज्जा-युक्त
होता है
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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