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अव्यय
कहाँ
कत्थ सिया एयं वज्जकुडरोदृगं
यह कठोर की हुई रोटी
अव्यय (एअ) 1/1 सवि [(वज्ज)-(कुड) भूकृ अनि(रोट्टग) 1/1] (साउ) 1/1 वि (गण) संकृ (भोत्तव्वा) विधिकृ 1/1 अनि
साउं
स्वादवाली
गणिऊण
भोत्तव्वं
गिनकर खाई जानी चाहिए क्योंकि
जओ
अव्यय
परन्नं
दूसरे की रोटी दुर्लभ
दुल्लहं लोगे
लोक में
इअ
यह
कहावत तुम्हारे द्वारा
क्या
नहीं
सुनी गई
सुआ तव (तुव)
[(पर) वि-(अन्न)] [(पर) वि-(अन्न) 1/1] (दुल्लह) 1/1 वि (लोग) 7/1 अव्यय (सुइ) 1/1 (तुम्ह) 3/1 स (कि) 1/1 स अव्यय (सुअ) भूकृ 1/1 अनि (तुम्ह) 6/1 स (इच्छा ) 1/1 अव्यय अव्यय (गच्छ) विधि 2/1 सक (अम्ह) 4/2 स (ससुर) 1/1 (कह) भवि 3/1 सक अव्यय (गम) भवि 1/2 सक
तुम्हारी
इच्छा
इच्छा
सिया
है
तया
गच्छसु अम्हाणं ससुरो कहिही
तब जाओ हमारे लिए ससुर कहेंगे
तया
तो
गमिस्सामो
जायेंगे
1.
कह-कहिहिइ-संधि-कहिही (अपवाद)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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