Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 359
________________ अपने शरीरों में छिपाते हैं छिपाकर सएहिं' काएहिं' साहरन्ति साहरित्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया संचिटुंति (स) 'अ' स्वार्थिक 3/2 (काअ) 3/2 (साहर) व 3/2 सक (साहर) संकृ (निच्चल) 1/2 वि (निप्फंद) 1/2 वि (तुसिणीय) 1/2 वि (संचिट्ठ) व 3/2 अक निश्चल स्थिर मौन रहते (थे) 8. पावसियालया जेणेव जहाँ कुम्मगा तेणेव उवागच्छति अव्यय तत्पश्चात् अव्यय वाक्यालंकार (त) 1/2 सवि [(पाव)-(सियाल) 'य' स्वार्थिक 1/2] पापी सियार अव्यय (त) 1/2 सवि (कुम्म) 'ग' स्वार्थिक 1/2 कछुए अव्यय वहाँ (उवागच्छ) व 3/2 सक आते हैं (उवागच्छ) संकृ आकर (त) 2/2 सवि उन (कुम्म) 'ग' स्वार्थिक 2/2 कछुओं को अव्यय सब तरफ से अव्यय चारों तरफ से (उव्वत्त) व 3/2 सक उलटा करते हैं (परियत्त) व 3/2 सक पलटते हैं (आसार) व 3/2 सक घुमाते हैं (संसार) व 3/2 सक हटाते हैं उवागच्छित्ता कुम्मगा सव्वओ समंता उव्वत्तेन्ति परियत्तेन्ति आसारेन्ति संसारेन्ति 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) 350 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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