Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 357
________________ गवेसमाणा मालुयाकच्छयाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता जेणेव मयंगतीरे (गवेस) वकृ 1/2 (मालुयाकच्छ) 5/1 (पडिणिक्खम) व 3/2 अक (पडिणिक्खम) संकृ खोजते हुए मालुकाकच्छ से बाहर निकलते हैं बाहर निकलकर जिस तरफ मृतगंगातीर अव्यय (मयंगतीर) 1/1 (दह) 1/1 हृद अव्यय दहे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता उस तरफ ही समीप आते हैं समीप जाकर तस्सेव उस मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं' परिघोलेमाणा परिघोलेमाणा वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति (उवागच्छ) व 3/1 सक (उवागच्छ) संकृ [(तस्स)+ (एव)] तस्स (त) 6/1 सवि एव (अव्यय) (मयंगतीरद्दह) 6/1 (परिपेरंत) 3/1 (परिघोल) वकृ 1/2 (परिघोल) वकृ 1/2 (वित्ति) 2/1 (कप्प) वकृ 1/2 (विहर) व 3/2 सक मृतगंगातीरहद की सीमा में घूमते हुए विचरण करते हुए निर्वाह साधन बनाते हुए गमन करते हैं अव्यय तत्पश्चात् GE AF अव्यय पादपूरक पावसियाला (त) 1/2 सवि [(पाव) वि-(सियाल) 1/2] (त) 2/2 सवि (कुम्म) 'अ' स्वार्थिक 2/2 (पास) व 3/2 सक पापी सियार उन कछुओं को देखते हैं कुम्मए पासंति 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) 348 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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