Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 366
________________ वा या दीक्षित हुआ पंच जो (ज) 1/1 स अम्हं (अम्ह) 6/2 स हमारे निग्गंथो (निग्गंथ) 1/1 निर्ग्रन्थ अव्यय अथवा/या निग्गंथी (निग्गंथी) 1/1 निर्ग्रन्थी अव्यय आयरियउवज्झायाणं [(आयरिय)-(उवज्झाय) 6/2] आचार्य और उपाध्याय के अंतिए (अंतिय) 7/1 समीप पव्वइए (पव्वइअ) भूकृ 1/1 अनि समाणे (समाण) 1/2 वि उपस्थित होते हुए (पंच) 1/2 वि पाँचों अव्यय और (त) 6/1 स उसकी इंदियाई (इंदिय) 1/2 इन्द्रियाँ अगुत्ताई [(अ)-(गुत्त) 1/2 वि] संयमित नहीं (असंयमित) भवंति (भव) व 3/2 अक होती हैं (त) 1/1 स वह अव्यय पादपूरक (इम) 7/1 सवि इस (भव) 7/1 भव में अव्यय बहूणं' (बहु) 6/2 वि बहुत समाणाणं (समण) 6/2 साधुओं द्वारा (बहु) 6/2 वि बहुत समणीणं (समणी) 6/2 श्रमणिओं द्वारा सावगाणं (सावग) 6/2 श्रावकों द्वारा साविगाणं (साविगा) 6/2 श्राविकाओं द्वारा हीलणिज्जे (हील) विधिकृ 1/1 अवज्ञा करने योग्य 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) बहूणं प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 357 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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