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बहूणं' साविगाण'
बहुत श्राविकाओं द्वारा
और
अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमंसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं
(बहु) 6/2 वि (साविगा) 6/2 अव्यय (अच्च) 1/1 विधिक (वंद) 1/1 विधिकृ (नमंस) 1/1 विधिक (पूय) 1/1 विधिकृ (सक्कार) 1/1 विधिक (सम्माण) 1/1 विधिकृ (कल्लाण) 1/1 (मंगल) 1/1 (देवय) 1/1 (चेइय) 1/1 (विणय) 3/1 क्रिवि (पज्जुवास) 1/1 विधिकृ (भव) व 3/1 अक
पूजा करने योग्य वन्दना करने योग्य नमन करने योग्य अर्चना करने योग्य सत्कार करने योग्य सम्मान करने योग्य कल्याण मंगल
मंगलं
देवयं
चेइयं विणएण पज्जुवासणिज्जे
जिनमन्दिर विनयपूर्वक उपासना करने योग्य होता है
भव
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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